Opening Line from a Ghulam Ali ghazal
अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूँ ।
तू मुझ सा हो गया, और मैं मेरे जैसा हूँ ।
रह रह कर इन स्याह रातों में
रह-रह नूर से डरता हूँ ।
नुमायाँ और बयां का फ़र्क मिट गया,
जैसा हूँ, मैं कहता हूँ ।
ज़माना तो छोड़ दूं, पर ज़माना छूटे कैसे,
कोई महफ़िल ये नहीं, के कह दूं - 'अच्छा चलता हूँ '।
इस दुनिया को इश्क़ की पहचान, आशिक़ों से बेहतर है
बहुत क़रीब से दुनिया देखी है, तो कहता हूँ ।
बेशक्ली, बेख़याली, बेख़ुदी,
मैं बस मेरे जैसा हूँ ।
अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूँ
तू मुझसा हो गया, और मैं मेरे जैसा हूँ ।
1 comment:
beautiful "mirror" image! love the last two lines :)
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