Friday, June 3, 2011

10 December 1998

60 Second के लिए सोचो,
अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो ?

मेरी सारी गलतियाँ माफ़ हो जातीं न ?
तब क्या पूछते मुझसे?
क्या शिकवे करते?
सच और झूठ के फ़रेब में ज़िन्दगी निकाल लेते ?
कुछ भी हो, मुझे तो नहीं कोसते ।
हर किसी ने कभी न कभी,
मौत के बारे में सोचा होगा,
पर मैं तो चला ही गया था,
उन २ दिनों के बाद लौट कर न आता तो?
अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो ?

आज मेरी आदत है,
मेरे प्यार की आदत है,
इतनी के, शायद अब आदत सी नहीं लगती,
मेरे होने की,
मुझसे बात करने की,
बैठ कर उन २ दिनों पर रोने की, आदत है
इतनी के, शायद अब आदत सी नहीं लगती
मेरी परवाह की परवाह है,
मुझे पाने के एहसास से प्यार है,
मुझे खोने का डर,
मेरा ध्यान खींचने की कोशिश है,
मुझसे रूठने को हर कोई तैयार है ।

मुझ में कमियां हैं, ग़लतियाँ हैं,
मेरा गुस्सा बर्दाश्त नहीं होता न?
शायद प्यार भी है मुझसे... शायद ।
पर शिकायतें हैं
मेरे होने की वजह से, शायद कहीं एक कमी सी भी है
मेरे वक़्त के लिए मुझी से लड़ाई भी है
मेरा होना काफी नहीं किसी को ।
शायद हम इंसानों का खेल ही ऐसा हो
किसी का होना काफी नहीं,
उसके होने से उम्मीद का घेरा और बढ़ ही जाता हो
पर अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो

कौन इतना ख़ास महसूस करवाता?
कौन हमेशा अपने पास बुलाता?
किसके पास आ कर,
हर ग़म का असर कम हो जाता?
किस पर अपने हक का ग़ुस्सा जताते?
किस पर ग़ुस्से का हक बन जाता ?
किसके बारे में बात कर, कहते - "बदल गया है?"
किसकी हमेशा कमियां गिनाते?
किसके प्यार पर फ़ैसले सुनाते?
किसके फ़ैसलों को ग़लत बताते?
किसे धोखा देते? लौट कर किसके पास आते?
किसे धोखा देते? लौट कर किसके पास आते?
किसके पास आ कर, सारे ग़लत सही हो जाते?
किस से उम्मीद लगाते?
किस पर हक़ जताते?
सोचो... क्या ऐसा मिल जाता कोई और?

उस वक़्त की दुआ थी, इसी लिए आज हूँ मैं
ये तो पता है की जब मिल गया, तो क्या हुआ
60 Second के लिए सोचो,
अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो ?

वैसे तो पहले ज़िंदगी, फिर मौत का डर होता है ।
जहाँ तक मेरा सवाल है
मैंने तो ज़िंदगी उल्टी जी है,
मौत से मिल कर ही ज़िंदगी शुरू की है,
इसी लिए शायद सब कुछ उल्टा देखता हूँ मैं ।
मुझ में... मेरे प्यार में... मेरे होने में...
कमियां हैं भी, और नज़र भी आती हैं ,
और शायद खूबियों से ज़्यादा निकाली भी जाती हैं,
उम्र पड़ी है ये करने के लिए,
पर सिर्फ - 60 Second के लिए सोचो,
अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो ?

मैं हूँ - ये काफ़ी नहीं,
आपने जैसा चाहा और सोचा वैसा मुझे बनाना चाहते हो
पर 60 Second के लिए सोचो,
अगर 10 December 1998 को मैं मर जाता तो ?

मुझे ख़ुदा न बनाओ, मुझे कोई ख़ास न बनाओ,
बस इतने सवाल न उठाओ,
जैसा हूँ... रहने दो,
जैसे हर किसी को कमियों के साथ अपना रखा है,
वैसे ही... रहने दो,
मुझसे उम्मीद मत लगाओ,
मेरे इम्तिहान मत लो,
अच्छे बुरे की कसौटी पर मत चढाओ,
इतनी चोट मत लगाओ,
मैं तो यूँ भी नहीं होने वाला था,
जब हूँ... तो रहने दो ।

1 comment:

Ajay Monga said...

Hi Siddharth ...read some of your works ...wud like to interact with you ... my email id is ajaymonga@gmail.com