चार दिन मांग कर लाये थे उम्र-ए-दराज़ से
दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में ।
मुहब्बत से शुरुआत हुई, अक़ीदत तक बात गयी,
बेबसी हमारी है इस इखतियार में ।
उम्र गयी पर शौक़ रह गया,
काम आएगा शायद अब ये क़रार में ।
महसूस से परे है ये सिलसिला,
आएगा कहाँ अब ये अशआर में ।
रूह पर नक्श रह जायेंगी बातें
पा जायेंगे खुल्द इस बार में ।
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