Monday, June 24, 2013

अण्डों का Rack

आज Fridge के, अण्डों के rack में नीम्बू पड़े थे

फिर?

 हमने कहीं न कहीं
यकीन भर रखा है
किसी इंसान में, किसी भगवान् में
किसी रिश्ते में, किसी फ़रिश्ते में
इस यकीन के क्या मायने हैं ?
साला इसी ने डर भर रखा है

अब बात चली है तो बिल फाड़ ही देते हैं
इस डर को यकीन की आड़ ही कहते हैं
पर डर किसी रिश्ते के टूटने का नहीं
किसी फ़रिश्ते के रूठने का नहीं
डर है दर्द से
अपने दर्द से

ये बात भी कोई नयी तो नहीं
जो सब कह चुके वही कही
फिर भी शायद किसी ने सुनी न हो
या तो यूँ कह लो
ब्रह्मा ने दुनिया रची ही न हो
घोर पाप

कुछ लिखा था तो शिर्डी ले गया
साईं चरण लगाने
सब बोले अब तो निकल पड़ेगी
फिर सार कुछ बदल गया
रचना  में प्रलय आ गयी जैसे
फिर भी
सब बोले अब तो निकल पड़ेगी
सब साईं ने बदल दिया
सब साईं ने बदल दिया
संगीन है। यकीन है।

अरे ये क्या पाप हो गया मुझसे
भरोसे  को यकीन कह गया
इस देश में शब्दों से अ ... मतलब लफ़्ज़ों से
मज़हब जांच लेते हैं लोग
महीन हैं। यकीन है।

अब जांचते हैं तो जांचा करें
यकीन से कई शब्द तुक खाते हैं
अब कविता में भरोसा लिखूं तो?
खैर इतने में मैंने खुद को
एक गर्म समोसा परोसा, और सोचा
के छोडो भरोसा, यकीन ही बेहतर है


हाँ तो हुआ ये
कि आज Fridge के अण्डों के rack में नीम्बू पड़े थे
थोड़ी मुश्किल हुई
पर मैंने नीम्बू उठाये और rack में अंडे रख दिए
भई जगह तो अण्डों की थी न
वहां  नीम्बू क्यूँ बैठेंगे ?
पर पहले तो हमेशा नीम्बू ही रहते थे
और अगर मॉस मच्छी का घर न होता तो ?
तो नीम्बू रहते। और क्या ?
पर अब अंडे हैं
छोडो न
कौन सा मंदिर गिरा के मस्जिद बनाया है