Wednesday, June 15, 2011

ये दुनिया ये महफ़िल

ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नहीं ।
न मैं समझ पाया इसे
न ये समझी ।
ये मुझे ढूँढती रही,
मैं इसे ।
जब अशआर कहीं निकलेंगे मेरे,
जब ज़िक्र होगा भूले से,
तो अश्क दो भी काफी होंगे,
दो अश्कों में हिसाब सारा हो जाएगा,
जी ली जितनी जीनी थी,
जो न जी, वो नाम की नहीं
ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नहीं ।
मेरे नाम के नीचे बस जगह खाली रख देना,
अलफ़ाज़ कहीं किताबों में कैद रख देना
आना न पड़े तो अच्छा, पर दुबारा यहाँ आया तो,
नाम के नीचे की खाली जगह से पहचान लूँगा,
जगह रहेगी, खाली जगह की, मेरे नाम की नहीं
ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नहीं
उम्र की सरहद तो तय है, पर तमाम की नहीं ।
लफ्ज़ मेरे पढ़ कर कोई न रोये तो बेहतर,
कद्र रहे उम्र की, अंजाम की नहीं ।
इस दुनिया में, दुनिया तलाशता रहा,
मिल गयी तो परेशान हूँ,
मैं न मिलूंगा, क्यूंकि मैं नहीं हूँ,
न ये परेशान थी, न होगी,
मुझ सा कोई मिल जाए तो याद तो आएगी,
मेरे जाने के बाद तो आएगी
हर लफ्ज़ में रह जाऊंगा,
मैं भी तो इसके अब कुछ काम का नहीं
और ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं ।

No comments: