Monday, May 30, 2011

पता नहीं आज सुबह से चश्मा कहाँ रख दिया है

पता नहीं आज सुबह से चश्मा कहाँ रख दिया है ।

ढूँढ-ढूँढ कर थक गयी हूँ,
ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ,
10-15 मिनट में याद आ ही जाता था
आज पता नहीं ध्यान कहाँ है ।
हर जगह ढूँढ भी लिया,
Laptop के पास भी नहीं था,
वैसे तो मैं वहां कभी रखती नहीं,
पर हर window sill पर भी देख लिया,
पता नहीं आज सुबह से चश्मा कहाँ रख दिया है ।

अखबार भी नहीं पढ़ पायी,
अक्षर कहाँ दिखते हैं ?
जब हार कर खिड़की पर बैठी,
तो लगा जैसे बाहर धुंध सी है,
गर्मी की इस सुबह में,
एक काल्पनिक सी सिहरन शरीर में दौड़ गयी,
पता नहीं था चश्मे का खोना,
मौसम बदल देगा,
गर्मी में जाड़ों का छल देगा ।

चेहरों में फ़र्क भी कम दिख रहा है,
सारे एक से दिखने लगे हैं,
यूँ हमेशा होता तो ठीक ही था वैसे,
सब बस दीखते इंसानों जैसे,
8 साल में पहली बार ऐसा कुछ किया,
पता नहीं आज सुबह से चश्मा कहाँ रख दिया है ।

जब मिलेगा तो ऐसी जगह मिलेगा,
जो आँखों के सामने ही रही अब तक,
ऐसी जगह जहाँ मुझे शायद,
सबसे पहले ढूँढना चाहिए था,
पर कोई नहीं...
ये चंद घंटों की धुंध,
ये चंद घंटों का नया मौसम,
ये चंद घंटों का धुंधला सच,
ये चंद घंटों का धुंधला झूठ,
ये मिटता सा फ़र्क
ये धुंधला सा अखबार का वर्क़
चंद घंटों के लिए सच से बचना,
इतना बुरा भी नहीं है ।
लगता है जैसे कल रात से,
अपना नज़रिया उतार कर कहीं रख दिया है ।
पता नहीं आज सुबह से चश्मा कहाँ रख दिया है ।

Monday, May 16, 2011

सदमा तो है मुझे भी

Beautiful ghazal by Qateel Shifai.

सदमा तो है मुझे भी, के तुझसे जुदा हूँ मैं,
लेकिन ये सोचता हूँ, के अब तेरा क्या हूँ मैं ।

बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद,
बेकार महफिलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं ।

क्या जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है, के सब कुछ तेरा हूँ मैं ।

ले मेरे तजुर्बों से सबक, ऐ मेरे रकीब,
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं - क़तील शिफ़ाई

My version starts here

जी लूं तेरी नज़र से ज़रा, पल दो पल को मैं,
इस एक पल की ख़ातिर, पल पल मरा हूँ मैं ।

पूछूं तेरा पता तो हैं क्यूँ हैरान से ये लोग,
अरबों की इस भीड़ में, मुझे ढूँढता हूँ मैं ।

तुझसे क्या शिकायत, क्यूँ रखूँ शिकवा कोई भी मैं ,
तेरी हूँ बेबसी मैं, तेरा गिला हूँ मैं ।

तन्हाईयों में रहा मैं तो ता-उम्र,
तुझसे मिला तो अब तो और भी तन्हा हूँ मैं ।

दर से तेरे उठा नहीं, मरने के डर से मैं,
इतना तो तुझे पता हो, के कैसे मरा हूँ मैं ।

लफ़्ज़ों में तेरे क्यूँ मुझको ही ढूँढ़ते हैं लोग,
इतना हूँ करीब के ग़ुम हो गया हूँ मैं ।

तुझको क्या गरज़ है बता, मौत से मेरी,
तेरे ही नाम से तो, अब तक जिया हूँ मैं ।

क्यूँ मुझसे करती है सवाल ये तेरी नज़र,
ये ख़ुद ही बोलती हैं, के अब तेरा क्या हूँ मैं

मेरे साथ मेरी कब्र में जाएगा ये गिला,
के सदमा तो है मुझे भी, तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ, के अब तेरा क्या हूँ मैं ।

Sunday, May 8, 2011

मेरी माँ मेरी वजह से है


मेरी माँ आज जो कुछ भी है, मेरी वजह से है ।

उसके माथे की लकीरें,
मेरे सालों बीमार रहने की वजह से हैं,
उसकी आँखों के नीचे रहने वाली रातें,
मेरे लिए रात-रात जागने की वजह से हैं,
एडियों में पड़ी दरारें,
शहर-दर-शहर मेरे लिए भागने की वजह से हैं
उँगलियों के धुंधलाते सूरज,
मेरे लिए हज़ारों (लाखों) परांठे बनाने की वजह से हैं,
अलमारी में साड़ियों के नीचे छिपे 500 के नोट,
मेरी किसी 'Emergency' की वजह से हैं,
उसकी वो सुनहरी साडी, मेरी वजह से है,
उसका हर गुस्सा,उसकी मांगी हर दुआ,
मेरी वजह से है,
इतने सालों बाद भी, मुझसे दूर जाते हुए,
उसकी आँखों की नमी, मेरी वजह से है,
उसके दिनों में मेरी कमी, मेरी वजह से है,
उसका ग़म, उसकी ख़ुशी, मेरी वजह से है,
हाँ... मगर... मेरा नाम पढ़ कर, या सुन कर,
उसके चेहरे पर छलकता गर्व,
वो भी मेरी वजह से है ।

Tuesday, May 3, 2011

चाबी

आज ग़लती से, घर की चाबी अन्दर ही रह गयी ।

अब क्या?
शाम को जब लौटूंगी, तो अन्दर कैसे जाऊंगी?
सब कुछ अन्दर हो रह गया,
पता नहीं आज कल क्या हो गया है मुझे,
कोई दुःख नहीं, न कोई चिंता,
फिर भी जाने क्या सोचती रहती हूँ,
जैसे ही दरवाज़ा खींचा,
एक पल में लग गया,
घर की चाबी अन्दर ही रह गयी

सब कुछ अन्दर ही रह गया ।
अब अँधेरा होने से पहले लौटना होगा,
वरना चाबी वाला नहीं मिलेगा ।
ओह! किताब तो ले ली होती,
आज ही भूलनी थी?
देखूं... शायद बैग में रखी थी,
उफ़... लगता है mobile भी अन्दर ही रह गया ।
अब तो किसी को phone भी नहीं कर पाऊँगी,
किसी का number भी जुबानी याद नहीं ।

सब कुछ अन्दर ही रह गया ।
पर मैं भी न... सोचती बहुत हूँ
शाम को तो आ ही जाउंगी ।
यहीं... वापिस ।
मोड़ पर ही चाबी वाला बैठा होगा,
नयी चाबी से, अपना पुराना ताला खोल दूँगी ।
फिर सब कुछ वहीँ का वहीँ मिलेगा,
चाबी भी हमेशा की तरह मेज़ पर ही पड़ी होगी ।
फिर रात को टिड्डियों की आवाज़ से जाग जाउंगी,
फिर रात को, कमरे की बत्ती जलती छोड़ कर सो जाउंगी,
फिर सुबह - रोज़ ही की तरह,
घर से निकल जाउंगी ।
फिर... रोज़ ही की तरह,
चाबी... वहीँ मेज़ पर भूल जाउंगी ।

Sunday, May 1, 2011

साले "Silent type" - Part 2

ये जो 'Silent type' के लोग होते हैं,
बड़े हरामज़ादे होते हैं ।

आये Party में, कोना मलक लिया,
फिर न हिलेंगे वहां से,
आप host हो, जिसने बुलाया था, तो अब भुगतो ।
आप पूछोगे - "Starters ले लो"
जवाब में सिर्फ गर्दन हिला कर 'न' कर देंगे ।
आप पूछोगे - "Drink ले लो"
जवाब - "मैं पीता नहीं"
न खाओगे, न पियोगे, न बकोगे,
तो क्या आँखें सेखने आये थे भाई,
दे दो police में,
आज कल तो पहले से ज्यादा थाने होते हैं ।
ये जो 'Silent type' के लोग होते हैं,
बड़े हरामज़ादे होते हैं

सारे पैंतरे होते हैं इनके पास,
mostly diet पर होते हैं
शराब नहीं पीते,
और हाँ आठ बजे के बाद, dinner भी नहीं करते
बताओ - इतने लफड़े हैं, तो आये क्यूँ हो यार ।

इनको देख कर उस film का नाम याद आता है
"कब तक चुप रहूंगी"
आज कल तो ये - "कब तक चुप रहूँगा" हो गया है ।
दरअसल बात ये है की इनके हिसाब से,
कोई इनके level का ही नहीं होता,
ये खुद को Einstein/Salaman Rushdie की छठी औलाद जो समझते हैं ।
इनके अन्दर क्या चलता है राम जाने,
क्या है इनका secret काम जाने ।

जो भी हो,
वो रहेंगे 'silent type' क्यूंकि देश आज़ाद है, उनका ये हक़ है ।
हम तो इनके बारे में लिखते रहेंगे, क्यूंकि देश आज़ाद है
और हमें बोलने का हक़ है

साले Silent type

ये जो 'Silent type' के लोग होते हैं,
बड़े हरामज़ादे होते हैं ।

कमीने क्या सोच रहे होते हैं, कोने में बैठ कर,
किसी को नहीं पता ।
बस चुपचाप अपने दिमाग में,
खिचड़ी पकाते रहते हैं ।
ऐसे लोगों को न By god
Parties में बुलाना ही नहीं चहिये
मजबूरी में बुलाना पड़े, तो सालों को ignore मारो।
वो भी हो सके तो उनकी drink में इसबगोल मिला दो ।
पेट पकड़ कर भाग जायेंगे party से ।

और बताओ 'anti-social' बोलते हैं ख़ुद को ।
अबे तो क्या एहसान किया हम पर?
इतनी मुसीबत थी तो party में आये क्यूँ भई?
घर पड़े रहते 'anti-social' बन कर ।
नहीं... आयेंगे भी, जताएंगे भी,
अपनी 'ख़ामोशी' से सतायेंगे भी ।
मैं तो कहता हूँ सारी planning है boss .
कोने में दुबक कर बैठोगे,
तो कोई न कोई लड़की आएगी, हाथ में Drink लिए,
शरीफजादे साहब तो पीते नहीं हैं,
मिल गया Conversation point,
बस फिर तो सिलसिला शुरू,
आप notice करना - अक्सर वही लड़की उनको घर भी 'drop' करेगी ।
उसका काम हो गया भाईसाहब - लड़की को 'mystery' solve करनी है ।
बार बार मिलेगी, बात आगे बढ़ेगी फिर तो बेचारी राम भरोसे ।
शकल मासूम सी, पर पूरे 'Tiger woods' वाले इरादे होते हैं ।
ये जो 'Silent type' के लोग होते हैं,
बड़े हरामज़ादे होते हैं

गहराई दिखती है लोगों को इन में,
ओये यार तो डूब ही जाओगे न ।
मेरे 'Circle' में भी हैं ऐसे एक दो जानवर,
Completely avoid करता हूँ मैं,
न घर बुलाता हूँ, न उनके घर जाता हूँ,
जितनी हो सके उतनी लड़कियों को उनसे मिलने से बचाता हूँ
इतनी ज़िम्मेदारी तो है मेरी
आखरी suggestion है भाई,
जहाँ दिखें, उनके कपड़े Public में उतार दो,
सांप और 'silent type' जहाँ दिखें मार दो .