शायर को उम्र से यूँ भी क्या चाहिए?
इश्क़, ग़ुरूर और मजाल काफ़ी है
Thursday, June 2, 2011
मुझे भूल जाएँ
एक दिन यूँ हो, मुझे कहीं रख कर, सब भूल जाएँ फिर सोचें मुझे ही, के कहाँ रख दिया है । उनके दिमाग़ में बस मैं रहूँ, पर कोई मुझे न ढूँढ पाएं, एकदिनयूँहो, मुझेकहींरखकर, सबभूलजाएँ ।
No comments:
Post a Comment