9GB Zindagi
शायर को उम्र से यूँ भी क्या चाहिए? इश्क़, ग़ुरूर और मजाल काफ़ी है
Thursday, July 15, 2010
उम्मीद
इस
उम्मीद
से बस उम्मीद थी ,
आज यूँ भी कहाँ ईद थी ।
ख्वाबों की आदत हो चली है,
इतनी प्यारी न कभी नींद थी ।
आयतें पढने को बस जी चाहा,
आज यूँ भी कहाँ ईद थी ।
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