मेरे लफ़्ज़ों से धोखा खा जाते हैं शायद
नादान एक शायर में आशिक़ ढूँढ़ते हैं
फिर आँखों के फ़रेब में आ जाते हैं शायद
नादान एक आशिक़ में शायर ढूँढ़ते हैं
जो भी कहूँ, झूठ समझते हैं
मेरे ग़म पर फ़ितने कसते, हँसते हैं
अब जब अपने पे हंसने लगा हूँ
तो मुझ में कायर ढूँढ़ते हैं
नादान एक आशिक़ में शायर ढूँढ़ते हैं
बेख़ुदी में जब भी नाम लिया कोई
जैसे जलता खंजर थाम लिया कोई
आ गए, सही, मज़हब, दायरे में तोलने वाले
आ गए मेरी हस्ती टटोलने वाले
ज़र्रा-ज़र्रा क़तरा-क़तरा इक-इक ढूँढ़ते हैं
एक शायर में आशिक़ ढूँढ़ते हैं
ये दुनिया तो ठीक थी
पर तुझे क्या हुआ यार मेरे
क्यूँ तुझे भी लगते हैं हाव-भाव बेदार मेरे
क्या तुझे नहीं लगते अलफ़ाज़ तलबगार मेरे
मैं वो शायर नहीं जिसे इश्क़ हो गया
मैं तो वो आशिक़ हूँ जो शायर हो गया
No comments:
Post a Comment