Wednesday, June 1, 2011

पुताई

इस दिवाली, सोच रहा हूँ,
दिल के घर की पुताई कर लूं ।

पिछले कुछ सालों में नहीं करवाई
हर बार, अगले साल कह कर टाल दिया,
अब एक पुराने घर जैसा लगने लगा है,
रंग उड़ गया है, उजली दीवारें में वक़्त बस गया है,
वक़्त ने पता नहीं कब, इन्हें मैला कर दिया,
बड़े बड़े कमरे हैं, ऊंची ऊंची दीवारें भी हैं,
नए रंग खरीद लाऊंगा थोड़े से,
इस से पहले के और बढे मेहेंगाई, कर लूं,
इस दिवाली, सोच रहा हूँ,
दिल के घर की पुताई कर लूं

जितना छोटा-छोटा सामान है, बाहर रख दूंगा,
बड़े बड़े सामान पर एक मैली चादर डाल दूंगा,
इस बार दीवारों पर सोच रहा हूँ, तस्वीरें नहीं लगाऊँगा,
एक मैल का डिब्बा सा छोड़ जाती हैं,
उतना हिस्सा बाक़ी दीवार से ज्यादा उजला रह जाता है,
उनके नीचे वक़्त भी ठहर जाता है ।
अगली बार और भी तकलीफ़ होगी,
वक़्त को जमने से नहीं बचाऊंगा,
इस बार दीवारों पर सोच रहा हूँ, तस्वीरें नहीं लगाऊँगा

ये Lights भी दीवारों पर ही क्यूँ लगतीं हैं,
इस बार इन्हें छत्त पर लगवा दूंगा,
ये यूँ भी अंधेरों में क्या ख़ाक रौशनी देती हैं
दीवारों को इस बार इस धोखे से बचा लूँगा ।

अजीब सी बात है,
फ़क़त दीवारों की वजह से,
घर पुराना सा लगने लगता है,
रंग दूंगा तो नया हो जाएगा,
थोडा सा ख़र्च है,
पर इसका किराया भी तो बढ़ जाएगा,
किराए पर चढ़ाऊँगा नहीं पर,
सिर्फ ज़मींदारों को चिढाऊँगा ।

मैली चादरें उतार कर,
सारा सामान नए सिरे से सजाऊँगा,
इस बार सोचा है, किसी एक दीवार पर,
तस्वीर के खांचे में एक आईना लगा दूं,
जो सारे सच बतायेगा,
घर में जो आएगा,
वो ख़ुद को देख पायेगा,
शायद उसके नीचे, वक़्त भी न जम पायेगा ।

और हाँ, दर पर जो घंटी लगी है,
उसको भी उजला पोत कर, दीवार में मिला दूंगा,
किसी को नज़र नहीं आएगी,
इस बार आनेवाले का पता पहले से होगा ।

नए घर का फ़रेब ख़ूबसूरत है,
इस फ़रेब में ज़रा,
धुंधली सच्चाई कर लूं,
इस दिवाली, सोच रहा हूँ,
दिल के घर की पुताई कर लूं

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