वो ढूंढते हैं इश्क़ मेरे लफ़्ज़ों में
कोई कहे क्या के लफ़्ज़ों में क्या रखा है
इसका सबब तो वही जानें
एक तो शौक़ है शायरी का
एक कहते हैं हमने बातों में फंसा रखा है
मुआमले में दिल के अक्सर हम सोचते हैं
अक्सर हम सोचते हैं के सोचने में क्या रखा है
उनकी बज़्म में आ कर सब तमाम हुआ जाता है
इसे छोडें तो दुनिया में क्या रखा है
इस उम्र से पहले का राब्ता है
वर्ना इस उम्र का तो सब कुछ यहाँ रखा है
हर सवाल का जवाब है तो हमारे पास
पर इन बेतुके सवालों में क्या रखा है
साया तो बेतुका सा है, सो है
उस कम्बख्त का क्या जिसने ये साया बना रखा है
मेरे मज़हब से परहेज़ है उनको
यां मेरे मज़हब ने मुझे क़ाफ़िर बना रखा है
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