एक कशमकश में ख़ुद को खोता रहा रात भर
इक सूई सी कोई चुभोता रहा रात भर
इक मसर्रत की लहर सी उठी है
यही फरेब होता रहा रात भर
दुनिया की नज़र से बचा कर
अपना नसीब धोता रहा रात भर
ये किसकी ख़ाक उड़के आँखों में आ रुकी
ये किसके आंसू रोता रहा रात भर
दिल की बस्ती में आग लगी थी शायद
चैन की नींद सोता रहा रात भर
नाउम्मीदी से रिश्ता रहा यूँ भी
क़ायम ये समझौता रहा रात भर
हर लम्हा हिम्मत दगा दे गयी
सिरहाने पड़ा सरौता रहा रात भर
1 comment:
it reminds of tht song..."aapki yaad aati rahi raat bhar"! though its a difft thot from a difft perspective. beautifully written. esp the line - dil ki basti mein aag lagi thi shayad, chain ki neend sota raha raat bhar...wow! deep, ironical and beautifully put! very very nice. and i like the name of the poem the most :) sui! sui chubhone wali baat sune bhi zamana ho gaya!
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