Friday, March 9, 2012

इश्क़ ग़रीब

आशिक़ सारे फुक्रे होते हैं

जब देखो जुबां लटकाए
दर-एक-बज़्म पे पड़े रहते हैं
दिन ढले चाँद चढ़े
यार के इंतज़ार में खड़े होते हैं
जब हाथ न कुछ लगा
तो इंतज़ार को धन-दौलत कह लिया
बड़े बेश्कीमती इनके दिल के टुकड़े होते हैं
आशिक़ सारे फुक्रे होते हैं

शायर जो हो गए आशिक़
तो जैसे मुफ़लिसी को चाँद लग गए
इंतज़ार, उम्मीद, हसरत
हर बात पे मिसरे होते हैं
हर शायर को इश्क़ हुआ
आशिक़ चाहे शायर हो
आशिक़ सारे फुक्रे होते हैं

सीधी सी बात है न
जिसे हसरत है - ग़रीब है
ख्वाब-औ-ख्वाहिश है - ग़रीब है
जिसे इंतज़ार है - ग़रीब है
भीख मांगता है - ग़रीब है
हाथ फैलाता है - ग़रीब है
अब ये मत कहना के
आशिक़ होंगे ग़रीब पर इश्क़
नायाब, महान, बेश्कीमती है
पर भाई ग़रीबी ही तो ग़रीब रखती है
आशिक़ ग़रीब तो इश्क़ ग़रीब
और दिया भी क्या है इश्क़ ने
होश, नींद, चैन, अक्ल,
ख़ुदी, खून... सब तो छीन लिया
इश्क़ वो ग़रीबी है जो जान के साथ ही जाती है

मीर, ज़फर, ग़ालिब, ज़ौक
फिर हरिवंश, कैफ़ी, अमृता, साहिर
कौन सा शायर जिसे इश्क़ न हुआ
कौन सा, जो मुफ़लिस न मरा
मसर्रत के किस्से कहाँ
सुनाने को बस नाला-औ-दुखड़े होते हैं
आशिक़ सारे फुक्रे होते हैं

दुनिया से छिपा फिरता है
रोज़ अपनी ही नज़र में गिरता है
शैतान का जाना है ये इश्क़
हमेशा अधूरा ही रखेगा
आशिक़ और इंसां के बीच
एक ग़रीबी की लकीर बनाके रखेगा
बन्दे से हो या भगवान् से
ये कमबख्त फ़कीर बना के रखेगा

Core thought - Garima

1 comment:

Garima said...

Mindblowing! Mindblowing! Mindblowing! isey kehte hain thought ko next level pe lekar jaana! I abs love it. esp - bade beshkeemti inke dil ke tukde hote hain. and ye gareebi jaan ke saath jayegi! its superb by all means! compelled to read again :)