Wednesday, March 7, 2012

आज हूँ, कल नहीं

इतना न मेरे पास आओ
आज हूँ मैं, कल नहीं

ख़ुद अपने लिए
'बेकस' लफ्ज़ का इस्तेमाल करता हूँ
कायर हूँ,
लफ़्ज़ों के पीछे छुपता हूँ
तन्हाई से इश्क़ है मुझे
क्यूँ तन्हाई से इश्क़ करता हूँ
ये राज़ ज़रा सुलझा लूं, पर तुम
इतना न मेरे पास आओ

नाराज़ है ये शबे-तारीक़
आज चाँद भी साथ न लायी
इस अदावत की वजह कौन जाने
ये बेदार क़दम
बंधे किस गिरह कौन जाने
इस सहरा में सहर न हो तो अच्छा
आगे कोई शेहर न हो तो अच्छा
जिस जगह से तुम आवाज़ लगा पाओ
इतना न मेरे पास आओ

बेबसी के सिवा है भी क्या
इसी से तो सब परेशां रहते हैं
कुछ शिकस्ता से जज़्बात के सिवा है भी क्या
हम रहते हैं, फ़ना रहते हैं
शक्ल-औ-सूरत पे न जाओ
आग हूँ
आज हूँ, कल नहीं

मेरी बेईश्की से शिकायत है
यानी मेरे इश्क़ को पहचानते हो
तो बेवजह न कोई इलज़ाम लगाओ
आज हूँ मैं, कल नहीं
अपने दर्द को मेरा रकीब न बनाओ
इतना न मेरे पास आओ
आज हूँ मैं, कल नहीं ।

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