Sunday, July 31, 2011

भगवान के बिकने का महीना है


Plastic bags से ढके हुए,
हर नुक्कड़, हर गली में,
भगवान के बिकने का महीना है

रंग नए पोत कर, अपने हाथों से तराशा है,
कहीं कहीं तो लगा है मेला,
बच्चे जमा हो कर देखते हैं,
जैसे कोई मस्त तमाशा है,
शाम तक, १५-२० बुत्त बिक जायेंगे,
आज तो दुकानदार बाहर खाना खायेंगे
चौड़ा आज हर कारीगर का सीना है
भगवान के बिकने का महीना है ।

बुत्तों के बीच बैठ कर,
५ वक़्त की नमाज़ पढ़ी है
इंसान की भूख
भगवान से बड़ी है
साल में एक मौका तो आता है
जब भगवान गरीब के काम आता है
हर बुत्त में, इंसान का खून-पसीना है
भगवान के बिकने का महीना है

जहाँ कारीगर का हाथ फिसला,
हाथ-पाँव टेढ़े हो जाते हैं,
अब करें क्या,
इसी बहाने बदले पूरे हो जाते हैं
मिट्टी पानी का घोल जिस कारीगर ने बनाया
उसे पता है ,
किस बुत्त ने कितना जीना है,
भगवान के बिकने का महीना है

११ दिनों में, ऐसा मानना है,
सारे दुःख दूर हो जाते हैं,
साल भर तू हमें डुबोते रहना,
साल में एक दिन,
हम तुझे डुबो आते हैं ।

2 comments:

Garima said...

superb! superb! superb! esp - saal mein ek din bhagwaan gareeb ke kaam aata hai wali baat aur 'badle poore karne wali baat!!!! very very nice!

Dasbehn said...

Very nice... I love the last part..