
एक दोस्त ने सुबह सुबह,
बहुत ही गहरे अंदाज़ में पुछा - "यार तूने सुबह का अखबार पढ़ा?"
अगले कुछ ३ मिनट के लिए मैं जैसे किसी और दुनिया में चला गया,
उसके एक सवाल की वजह से,
मैंने कई चीज़ें सोच डालीं,
जैसे चल पड़ी हो ख्यालों की रेल गाड़ी,
सोचा -
"कालका एक्सप्रेस की खबर सुनते ही, जब बेटे ने बाप का Mobile try किया होगा,
तो उसने सोचा होगा की कम से कम घंटी तो बजे"
"अगर इस मलबे में मेरी टांग फँस जाती तो?"
सोचा -
"July में हुए blasts के बाद, जो बंदा coma में था, वो बात करने लगा है
क्या वो अपना जन्मदिन अब इसी महीने में मनाएगा?"
फिर सोचा -
"अगर दो फीट से कोई गोली मार दे मुझे, तो क्या दर्द से बेहोश हो जाऊँगा?
और कभी नहीं उठूंगा? 3-4 गोलियाँ मार दे तो दर्द होगा क्या?"
फिर सोचा
"जब Plane पानी में Crash हो, तो मौत झटके से होगी या डूब कर?"
"Taj के सामने फिर गाडियां चलेंगी. इसी महीने में ये करना, आखरी बदला है?"
मुझे ख्यालों में खोया देख कर, वो बोला,
"मैंने पूछा - सुबह का अखबार पढ़ा? Delhi Belly का भी sequel बन रहा है.
बताओ यार - एक बार हग कर काफी नहीं हुआ क्या? "
मैंने कहा - "तो इसके लिए तुझे इतनी tension क्यूँ हो रही है?"
कहता है - "नहीं यार... ये generation कहाँ जा रही है?"
मैंने उसे देखा - 24 साल का architect, worli में पुश्तैनी घर है.
मैंने कहा - "हाँ यार सही बात है, ये generation कहाँ जा रही है."
कहता है - "चल यार छोड़, हम और कर भी क्या सकते हैं...
एक Drink और बनाऊं?"
1 comment:
So real and true!!
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