Monday, July 4, 2011

अँधा कुआँ

गुफ्तुगू तूने सिखाई है, मैं तो गूंगा था,
अब मैं बोलूं तो बातों में असर भी देना । - Traditional lyrics from a Hans Raj Hans Song

अंधे कुँए में छिप बैठा रहूँ,
ठन्डे पानी सा ही ठंडा रहूँ,
रात हो तो अब्र अँधेरे में मिल जाएँ,
गूंगा नहीं रहा तो क्या,
अच्छा है अँधा रहूँ
मुझे इश्क़ नहीं आता तो मर जाता,
इस अंधे कुँए में मेरा अपना शेहर भी देना ।

कुँए की इक दीवार पर,
एक दिन की एक रेखा है,
कितने हुए ख़ुदा जाने,
अँधेरा है, कहाँ देखा है ?
तेरी नज़र का एहसास है मुझे,
मैं जानता हूँ, तू मुझे लेकर परेशान है,
इल्म धड़कन का है तेरी,
जानता हूँ, मुझ सा तू भी बेजान है
गुल नहीं तो न सही,
उम्मीद की एक शजर ही देना

सांसें बख्शी हैं, तेरा दम भरने के लिए,
तो दुआ तो कर,
इस बेक़रारी को कम करने के लिए,
उम्र मेरी इन अंधेरों में आ सिमटी है,
मुझसे ये बे-नूरी आ लिपटी है,
अब हर दिन रात रहती है,
मरी आँखों को बस तेरी ताक रहती है
जल गुजरी है हर हसरत,
राख़, राख़, राख़, राख़ रहती है,
ये मैं हूँ इस अँधेरे कुँए में,
या मेरी ख़ाक, ख़ाक रहती है
जाँ के निकलने का कोई सबब ही देना,
नहीं तो बस एक मुट्ठी सबर ही देना ।
इस अंधे कुँए का मुंह बंद कर दे,
यहीं अन्दर, मुझको मेरी क़बर ही देना ।

The traditional lyrics are very romantic and very positive। My interpretation is very different from the original. It changes the mood of the couplet. Well.

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