कल शायद ये ग़म न होंगे,
मगर कल शायद हम न होंगे ।
ये ख़लिश, ये दर्द, ये रंज के मौसम न होंगे
मगर कल शायद हम न होंगे ।
उम्मीद, ख्वाहिशों के ये सिलसिले, ये जश्न-ए-मातम न होंगे,
मगर कल शायद हम न होंगे ।
इश्क, हसरत, परस्तिश - ये सारे मरहम न होंगे,
मगर कल शायद हम न होंगे ।
ये तन्हाई, ये रुसवाई, ये ग़मज़दा महफ़िलें, ये आलम न होंगे,
मगर कल शायद हम न होंगे ।
आँखों में अश्क़ भर कर, वो गए हैं कह कर - "के कल हम न होंगे"
मगर कल शायद हम न होंगे ।
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