Wednesday, March 9, 2011
जेब से पुराना पर्चा निकला - Version 1
आज जेब से एक पुराना पर्चा निकला
Jeans के साथ धुल चुका था,
मरियल सा हो गया था, साबुन का पानी पी कर,
आधा हिस्सा ही मेरे हाथ आया,
अजीब सा लगता है, जब भी ये होता है
डर सा लगता है, की कोई छिपी हुई याद
झट से सामने न आ जाए
हिचकिचाते हुए खोला मैंने,
पेट से मुड़ा हुआ था
लिखा था, ...श्क है ।
पढ़ कर जैसे याद तर-औ-ताज़ा हो गयी,
उस दिन, काजल बह कर गाल काले कर चुका था,
कांपते हाथों से पकड़ा दिया था, ये ख़त मुझे
मैंने बिना पढ़े ही फाड़ दिया
टुकड़े हवा में उछाल दिए थे,
जानता था उस में क्या लिखा था,
उसके जाने के बाद, देर तक टुकड़े बटोरता रहा
आज पर्चे के साथ किस्सा याद आया तो,
उस से जुड़ा बस ग़म याद आया,
मेज़ से एक काग़ज़ का टुकड़ा उठाया,
एक अक्षर लिख कर,
tape से उसे पर्चे से जोड़ दिया,
अब लिखा था "इश्क़ है"
चुपचाप उसे पेट से मोड़ कर,
फिर Jeans की जेब में डाल दिया,
दोबारा कभी मिल गया तो कमबख्त,
"अश्क है" नहीं "इश्क़ है" ।
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4 comments:
very nice! esp d pic. the whole idea of "shq" is superb!
As usual awesome
@Chiku! Thanks buddy. Tu padhta hai blog mera?
Loved this one.. Very nice.
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