Sunday, June 28, 2009

जश्न - ऐ- सहराँ

The first 2 lines are written by Garima.

आज मैंने आँखों से पी है, आंखों से बहाई है,
गीले ख्वाबों को न तोड़ने की कसम खाई है ।

अश्कों की उम्मीद में जश्न-ऐ-सहराँ मनाते रहे,
झूठ को सच कहा, सच को झुठलाते रहे
अब ये अश्क न थामेंगे,
न कभी भाप बन उडेंगे,
और न बर्फ बन जमेंगे,
आज इनके आने की खुशी मनाई है ।
गीले ख्वाबों को तोड़ने की कसम खाई है

सींचा है बे मुरव्वत ख्वाबों को,
अनकहे जवाबों को,
बूँद बूँद में नमक चखा है,
हर अश्क का हिसाब बना रखा है,
हर दर्द की गिनती लगाई है,
गीले ख्वाबों को तोड़ने की कसम खाई है

शायद मैं मग़रूर थी,
पर कमली तो मैं ज़रूर थी,
अभी तक तो सिर्फ़ ज़िन्दगी आजमाई है,
साँसों की फकत उम्मीद जताई है,
पर आज सजदा किया, ईद मनाई है,
बरसों बाद, अश्कों में आँखें नहाई हैं,
बस इसी लिए,
आज मैंने आँखों से पी है, आंखों से बहाई है,
गीले ख्वाबों को तोड़ने की कसम खाई है

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