Saturday, June 13, 2009

भाप

खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।

बाहर का मौसम गर्म था, नम था,
अन्दर बर्फ पड़ी थी,
कोई कहानी, पन्नों पर बिखरने को,
हर्फ़ हर्फ़ लड़ी थी,
सच्चाई निकलती कैसे,
उम्मीदें रस्ते में खड़ी थी,
अन्दर घुसने को आंसू बन,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी

नज़र को छान रही थी,
मन में ठान रही थी,
आंधी का जज़्बा लिए,
ऊंघती सी, जैसे थमी थी,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी

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