Monday, August 17, 2009

महाबली

लहर नई एक चली है,
मरियल बाहुबली है,
कनपट्टी पर टेक रखी
बन्दूक की दो नली है
चड्डीयाँ गीली कर जायेगी,
जो लहर नई ये चली है ।

धूल पड़े तमंचों को,
धो धो के तिलक कर लिया,
बहुत हुआ नामुल्कियों से,
हमने मुलक भर लिया,
मल मल के साबुन स्नान किया,
झाग पर पानी छिड़का,
पवित्र अपना स्थान किया,
क्या उखाडा जो मज़हब पर,
ख़ुद को हमने कुर्बान किया?
फर्क पड़ा क्या हमपर,
लाश दफ़न या जली है,
लहर नई एक चली है ।

सन्नाटों पर चिल्लायेंगे,
लात मार कर छुप जायेंगे,
शोर को बांधे डोर,
कोने कूचों में ले जायेंगे,
काट काट के बाँटेंगे,
हर हिस्से को देंगे एक हिस्सा,
जले हुए इतिहास के पन्नों पर,
लौ सा चमकेगा ये किस्सा,
करोड़ों चिताओं के बाद,
आज ये आग लगी भली है,
लहर नई एक चली है

बुध माना है ख़ुद को,
टांगें ताने लेटा है,
सोया सोया क्रोध जैसे,
अफीम चढाये बैठा है,
मस्त है, नशे में ये सच उगलेगा,
मुंह से सबके झाग बन,
दूध का चोला ओढ़ उबलेगा,
अंतडियों में रस घोल कर,
पलकों की चढाई बलि है,
लहर नई एक चली है

ले डूबेगी, ले डूबेगी,
आवाम के सारे मनसूबे की,
जान पर अब बनी है,
चुपचाप सा रहा, दबा सा था,
आक्रोश को जैसे दम सा था,
खांसेगा तो थूक उडेगी,
इसी बहाने बन्दूक उठेगी,
बहुत समय गोली टली है,
लहर नई एक चली है

अचंभित ज़माना रह जायगे,
मुंह खुला कुछ न कह पायेगा,
रक्त जमा न बह पायेगा,
जिंदा जलेंगे, तपन से नस पिघलेगी,
ठंडे खून के प्रायश्चित में,
मुफ्त ही चमड़ी जलेगी,
रोंगटों से शुरुआत करो, ये ज़्यादा मखमली है,
लहर नई एक चली है

हर पुराने संदूक की चाबी,
हर अधपकी बात किताबी,
नकचडों की ठाठ नवाबी,
दीवान पर बिखेरो, जला डालो ।
पुरानी चारपाइयों के खीसे,
नए नवेले जूतों के फीते,
पेड़ पर लगे कच्चे पपीते,
दीवान पर बिखेरो, जला डालो
देश प्रेम की हर एक कविता,
लंगोट में लंगूरों को नहलाने वाली सरिता
बचीकुची आधी जली हुई चिता,
दीवान पर बिखेरो, जला डालो
खाली पड़ी नमकदानी,
भूरी हुई फसल जो धानी,
नानी की हर कहानी,
दीवान पर बिखेरो, जला डालो

अब नया बाज़ुबंध चढाये,
ललाट पर चंदन लगाए,
सफ़ेद कफ़न का कवच बनाए,
आंखों की पलकें निकाल,
लहुलुहान सा... उधेड़ के खाल,
दो धारी तलवार लिए,
आया महाबली है,
लहर नई एक चली है
आया महाबली है ।

2 comments:

Unknown said...

superb stuff sid! Am sure you will be a famous writer some day.

Swati Sapna said...

Rockstar :)