Tuesday, June 23, 2009

दुकान

निकल पड़े हैं दुकान लिए ।

सब कुछ बिकाऊ है,
सुंदर है, सस्ता टिकाऊ है,
एक तरफ़ है कथा का बक्सा,
दूसरे में है व्यथा का चस्का,
रखे हैं सारे एहसास मरतबानों में,
कहानी और किस्से, भरे पड़े खानों में,
रोमांचक मोडों का, उधर बीच में, अम्बार है,
बहार लगी किरदारों की कतार है,
हाथों में सबकी जान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।

छोटी छोटी बोतलों में भरी, कहानी मिलेगी,
बस यूँ थाली में डालो, खोयी जवानी मिलेगी,
बोरियां भर भर राखी हैं रिश्तों से,
चलो निभाते रहना किश्तों में,
आते जाते खाने वाला सामान, सामने शीशियों में रखा है,
पकाने के बाद, हथेली पे ले, सब कुछ चखा है,
ग्राहक को अपना भगवान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए

कहने को दुकान है, हर तरह का सामान है,
चाय की पत्ति से लेकर, चुस्कियों के आनंद तक,
सपनों के डेरे,
सच्चाई के घेरे,
अरमान चढाये चूल्हे पर, पक जायंगे तो स्वाद देंगे,
आज को आज, कल को याद देंगे,
कागज़ पर लिख हम सारी फरियाद देंगे,
मुठी भर सपने, ५०० ग्राम अरमान लिए
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।

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