Friday, October 10, 2008

शरीर - २

The part two.

seems like there will be a part three. or may be one more after that.

.....


क्यूँ कुछ बातें, कुछ सिरे - फिर सही?
क्यूँ अब भी, भाग रहा हूँ मैं?
क्यूँ इस हाल में भी जाग रहा हूँ मैं?
अभी नही तो कभी नही,
'फिर सही' कह भागना सही नही ।

मुझे जलाना, नही... दफ्न करना,
मुंह पर उजला कफ़न करना,
न धर्म से कोई ग़रज मुझे,
न उसूलों का कोई ज्ञान,
बस आग से डरता हूँ,
मुर्शदों और पंडितों से छिप कर,
धरती को इस शरीर का समर्पण करना
मुझे जलाना नही... दफ्न करना ।

अब तो चलेगी मर्ज़ी मेरी,
क्यूंकि यहाँ जो शरीर पड़ा है वो मेरा है ।

पर मेरा बस मेरा काबू अब कहाँ,
छू ना पाऊंगा जिसे छूना था,
ज़िन्दगी भर के रिश्तों को,
यूँ ही तमाम होना था,
पीछे भीड़ में कोई खड़ा, उदास है,
आंखों में आंसू नही, पर हताश है
उम्र भर मुझ में ख़ुद को ढूँढता रहा,
आज से शुरू उसकी नई तलाश है,
"क्यूँ ये अचानक हुआ?"
हर सवाल का जवाब आज सिर्फ़ एक "काश" है ।
सालों बिता दिए बंटवारे करते-करते
ये मेरा और ये तेरा है,
लेकिन आज...
यहाँ जो शरीर पड़ा है वो मेरा है। सिर्फ़ मेरा है ।

मैं चाहता हूँ इस भीड़ में खड़े कुछ लोग, कोसें ख़ुद को,
जज्बातों की थाली में रख, मुझसे कहे वो शब्द, परोसें ख़ुद को,
मुझे कोई शर्म नही के ये ख्याल मुझ में अब भी जिंदा हैं,
कहने को सिर्फ़ एक शब्द पर बे मतलब - की हम इन्सां हैं,
हर सच के चारों ओर बनाया एक झूठ का घेरा है,
पर ये सच आजाद है,
की यहाँ जो शरीर पड़ा है वो मेरा है ।

अब ख़ुद से ना भागूंगा, ना डरूंगा,
जो करता आया उम्र भर अब ना करूंगा
मर तो गया, पर अब ना मरूंगा ।

कोने में खड़ी उस औरत से ये कहना है मुझे,
प्यार नही था, झूठ कहा था तुझसे,
पर जब कहा था नही करता प्यार तुझसे,
झूठ कहा था ख़ुद से,
मैं समझता था तुझको, आंसू देखे नही जाते थे,
बटोरे हुए तेरे नाखून के टुकड़े, मुझसे फेंके नही जाते थे,
उम्र भर आलापता, प्यार क्या है मुझे पता है,
आज अब और नही कुछ कहना,
अब तो सब साफ़-साफ़ तुझे पता है ।

हर कोई यहाँ मेरे शरीर की जगह अपने शरीर को देखता होगा,
फिर दीवार का सहारा ले, ख़ुद को समेटता होगा,
एक शांत सी शान्ति है अचानक इस कमरे में,
जैसे कई लाशों का ये डेरा है,

यहाँ जो शरीर पड़ा है वो मेरा है ।

2 comments:

Dasbehn said...

I can see that there will be a part three and a part four to this as well... and I think they'll all be worth it :-)

Dasbehn said...

Just read the poem again... read it aloud to gautam.. both of us liked part one better :-)