Monday, September 29, 2008

शरीर

The thought behind this is someone else's. the person knows it. thanks!

This is the first part of the poem. The second part will follow. may be some more parts will follow. the words dont seem to stop.

Will try and cover another aspect in the next one.


यहाँ जो शरीर पड़ा है, वो मेरा है ।

रिश्तों के झूठे-मूठे ढकोसलों का,
कुछ टूटे-फूटे हौंसलों का,
बची कुची धडकनों का,
कटी फटी अड़चनों का,
हिसाब बाकी रह गया... फिर सही !

भीड़ में मिले-जुले कुछ चेहरों का,
जज्बातों की आधी अधूरी नेहरों का,
चली अन्चली कुछ चालों का,
सुने अनसुने कुछ सवालों का,
जवाब बाकी रह गया... फिर सही !

उजाले नए कई देखे,
अब देखने वाला तो ये नया अँधेरा है ।
यहाँ जो शरीर पड़ा है, वो मेरा है

बहेंगे कुछ आंसू, सच्चे कम, झूठे ज़्यादा,
मेरे फैसलों से सहमत थे कम, रूठे ज़्यादा,
रख बैठेंगे अब दिल में मलाल,
करते रहेंगे ख़ुद से सवाल, ख़ुद से बवाल,
जब माथे पर मेरे जडेंगे गुलाल,
इस बार नही खुलेंगी ये आँखें,
न उठेंगी ये मृत भोहें,
बस दोहराते रहना अपने मन में मेरी बातें,
सोचते रहना काश क्या 'नही' किया होता,
भूल जाओगे मेरी, बस याद रह जायेंगी अपनी घातें,
याद रहे, बचे कुचे रिश्तों को निभाना, नाम देना, अब काम तेरा है ।
यहाँ जो शरीर पड़ा है, वो मेरा है

कितना कठिन था जीना, जीता था तब नही लगा,
इस नींद में सोया तो अच्छा लगा जब नहीं जगा,
सबकी सोच में ख़ुद की सोच कहीं खो बैठा था,
कई बार किसी और के आंसू रो बैठा था,
किसी और की अदा पर कई बार मैं ऐंठा था,
कितनी बातें, कितने पल, कितने एहसास,
कितने आंसू, छिपा कर रखे थे अपने पास,
सोचा था वक्त आएगा तो रो दूँगा,
सारी जमापूंजी खो दूँगा,
सब रह गया, मैं बह गया,
हिसाब बाकी रह गया... फिर सही !


किसी पे क्रोध नही, न किसी पर ग्लानी है,
रह जाता बस दो खुली मुठी पानी है,
सब खो दिया रिश्तों को बनाते बनाते,
सब पा लिया यहाँ से जाते जाते ।

ये ठंडा फर्श, ये ठंडा जल,
ये ताजे फूल, जो मुरझा जायेंगे कल,
न रहेगा मुह में पड़ा छाला,
जल जाएगा साथ ये घृत का प्याला,

सोचूंगा येही मैं शायद, पर अजीब लगेगा,
की यहाँ जो शरीर पड़ा है, वो मेरा है

3 comments:

Garima said...

mindblowing stuff! clearly one of your best...read it over and over again.

Garima said...

came back to your blog to read this poem again. it is exemplary. i'm jealous

Dasbehn said...

Nice... simple yet nice.. Will there be a second part to this soon??

Also.. whose idea was this originally? I am glad you mentioned it.. My proff used to say "In writing and in life, footnotes are very important"!