Saturday, October 25, 2008

खला

ये खला है सबसे भला ।

उन्स की दीवार है,
है कभी बसेरा तो कभी खार है,
ख़ुद को दबोचे रखा है,
छुपा हूँ तो बचा हूँ,
खूं बहता है नस में,
जुनूँ रहता है बस में,
बस कुछ तन्हाइयों का नया सिलसिला चला है,
पर ये खला सब से भला है ।

मौजूदगी का मंज़र,
मुख्तसर सा है,
वस्ल का वक्त,
बेअसर सा है,
रंजिश सी, खलिश सी है,
बस पे बंदिश सी है,
मिस्रे बे-अक्स,
हर्फ़ खुश्क,
काग़ज़ खुरदरा कम्बख्त,
आफ़ताब भुना, जला है,
पर ये खला सब से भला है ।

हर खले से बेहतर है,
सब से ज़्यादा इसमें असर है,
अपना वजूद है, गहरा है,
वक्त के साथ यारी है, ठहरा है,
मुझसे नज़रें मिलाता है, डरता नही,
जीत गया है मुझसे, मरता नही,
हर खले का देखा-भांपा है,
हर खले के साथ पला है,
ये खला सब से भला है ।

जाता नही, मेरे पास रहता है,
सुनता नही, न ही कुछ कहता है,
मेरे छूने से डरता नही,
सवाल जवाब कुछ करता नही,
मेरी रूह के साथ चलता है,
सोता नही, पर नींद से आँखें मलता है,
नही पालने से ही पलता है,
इस से कुछ इश्क सा हो चला है,
ये खला सबसे भला है ।

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