Beautiful ghazal by Qateel Shifai.
सदमा तो है मुझे भी, के तुझसे जुदा हूँ मैं,
लेकिन ये सोचता हूँ, के अब तेरा क्या हूँ मैं ।
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद,
बेकार महफिलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं ।
क्या जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है, के सब कुछ तेरा हूँ मैं ।
ले मेरे तजुर्बों से सबक, ऐ मेरे रकीब,
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं - क़तील शिफ़ाई
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जी लूं तेरी नज़र से ज़रा, पल दो पल को मैं,
इस एक पल की ख़ातिर, पल पल मरा हूँ मैं ।
पूछूं तेरा पता तो हैं क्यूँ हैरान से ये लोग,
अरबों की इस भीड़ में, मुझे ढूँढता हूँ मैं ।
तुझसे क्या शिकायत, क्यूँ रखूँ शिकवा कोई भी मैं ,
तेरी हूँ बेबसी मैं, तेरा गिला हूँ मैं ।
तन्हाईयों में रहा मैं तो ता-उम्र,
तुझसे मिला तो अब तो और भी तन्हा हूँ मैं ।
दर से तेरे उठा नहीं, मरने के डर से मैं,
इतना तो तुझे पता हो, के कैसे मरा हूँ मैं ।
लफ़्ज़ों में तेरे क्यूँ मुझको ही ढूँढ़ते हैं लोग,
इतना हूँ करीब के ग़ुम हो गया हूँ मैं ।
तुझको क्या गरज़ है बता, मौत से मेरी,
तेरे ही नाम से तो, अब तक जिया हूँ मैं ।
क्यूँ मुझसे करती है सवाल ये तेरी नज़र,
ये ख़ुद ही बोलती हैं, के अब तेरा क्या हूँ मैं ।
मेरे साथ मेरी कब्र में जाएगा ये गिला,
के सदमा तो है मुझे भी, तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ, के अब तेरा क्या हूँ मैं ।
1 comment:
Its sung beautifully by Jagjit Singh too... you are not a fan no? If you can bear Chitra Singh's voice (I quite like her, listen to Dil e nadan tujhe hua kya hai.. and also.. ek na ek shamma.. I especially like the latter...and this sher in it-
Damaane yaar ki zeenat na bane har aansoo, apni palkon ke liye kuch to bachaye rakhiye... :-)
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