Tuesday, May 3, 2011

चाबी

आज ग़लती से, घर की चाबी अन्दर ही रह गयी ।

अब क्या?
शाम को जब लौटूंगी, तो अन्दर कैसे जाऊंगी?
सब कुछ अन्दर हो रह गया,
पता नहीं आज कल क्या हो गया है मुझे,
कोई दुःख नहीं, न कोई चिंता,
फिर भी जाने क्या सोचती रहती हूँ,
जैसे ही दरवाज़ा खींचा,
एक पल में लग गया,
घर की चाबी अन्दर ही रह गयी

सब कुछ अन्दर ही रह गया ।
अब अँधेरा होने से पहले लौटना होगा,
वरना चाबी वाला नहीं मिलेगा ।
ओह! किताब तो ले ली होती,
आज ही भूलनी थी?
देखूं... शायद बैग में रखी थी,
उफ़... लगता है mobile भी अन्दर ही रह गया ।
अब तो किसी को phone भी नहीं कर पाऊँगी,
किसी का number भी जुबानी याद नहीं ।

सब कुछ अन्दर ही रह गया ।
पर मैं भी न... सोचती बहुत हूँ
शाम को तो आ ही जाउंगी ।
यहीं... वापिस ।
मोड़ पर ही चाबी वाला बैठा होगा,
नयी चाबी से, अपना पुराना ताला खोल दूँगी ।
फिर सब कुछ वहीँ का वहीँ मिलेगा,
चाबी भी हमेशा की तरह मेज़ पर ही पड़ी होगी ।
फिर रात को टिड्डियों की आवाज़ से जाग जाउंगी,
फिर रात को, कमरे की बत्ती जलती छोड़ कर सो जाउंगी,
फिर सुबह - रोज़ ही की तरह,
घर से निकल जाउंगी ।
फिर... रोज़ ही की तरह,
चाबी... वहीँ मेज़ पर भूल जाउंगी ।

1 comment:

Dasbehn said...

शाम को तो आ ही जाउंगी ।
यहीं... वापिस ।
मोड़ पर ही चाबी वाला बैठा होगा,
नयी चाबी से, अपना पुराना ताला खोल दूँगी ।
फिर सब कुछ वहीँ का वहीँ मिलेगा,

I dont understand the first 2 lines and dont agree with the last 2. Wapis wahin kaise ja sakta hai koi? And nayi chabi se purana taala khul bhi gaya... to sab kuch wahin ka wahin definitely nahi hoga... I dont know if I am making sense.. or getting my point across.

Anyway, chabiyon mein kya rakha hai.. hum aajkal keychains rakhte hain paas... koi chaabi aage jaake mili, to sambhal ke rakhne ke liye.