The first 2 lines are written by Garima.
आज मैंने आँखों से पी है, आंखों से बहाई है,
गीले ख्वाबों को न तोड़ने की कसम खाई है ।
अश्कों की उम्मीद में जश्न-ऐ-सहराँ मनाते रहे,
झूठ को सच कहा, सच को झुठलाते रहे
अब ये अश्क न थामेंगे,
न कभी भाप बन उडेंगे,
और न बर्फ बन जमेंगे,
आज इनके आने की खुशी मनाई है ।
गीले ख्वाबों को न तोड़ने की कसम खाई है ।
सींचा है बे मुरव्वत ख्वाबों को,
अनकहे जवाबों को,
बूँद बूँद में नमक चखा है,
हर अश्क का हिसाब बना रखा है,
हर दर्द की गिनती लगाई है,
गीले ख्वाबों को न तोड़ने की कसम खाई है ।
शायद मैं मग़रूर थी,
पर कमली तो मैं ज़रूर थी,
अभी तक तो सिर्फ़ ज़िन्दगी आजमाई है,
साँसों की फकत उम्मीद जताई है,
पर आज सजदा किया, ईद मनाई है,
बरसों बाद, अश्कों में आँखें नहाई हैं,
बस इसी लिए,
आज मैंने आँखों से पी है, आंखों से बहाई है,
गीले ख्वाबों को न तोड़ने की कसम खाई है ।
Sunday, June 28, 2009
बरसात
The first two lines are written by my ex-boss Shifa. Credit goes to her!
हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
पैमानों में भर भर रंगीन पानी,
हल्का सा निम्बू निचोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
चाह लगाए बैठे थे, खो जायेंगे सुरूर में,
धोखेबाज़ बरसात ने उम्मीद का रुख मोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
मौसिकी के इस मौसम में, यूँ ही नशा रहता है,
उठाया पैमाना और धड़ल्ले से तोड़ दिया,
न बरसी शराब तो न सही,
हमने आज से पीना छोड़ दिया, आज से पीना छोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
पैमानों में भर भर रंगीन पानी,
हल्का सा निम्बू निचोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
चाह लगाए बैठे थे, खो जायेंगे सुरूर में,
धोखेबाज़ बरसात ने उम्मीद का रुख मोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
मौसिकी के इस मौसम में, यूँ ही नशा रहता है,
उठाया पैमाना और धड़ल्ले से तोड़ दिया,
न बरसी शराब तो न सही,
हमने आज से पीना छोड़ दिया, आज से पीना छोड़ दिया,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया ।
नित्त खैर
नित्त खैर मंगां सोनेया मैं तेरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
तेरे पैरां च अखीर होवे मेरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
सानु वस्ल दा, न कोई अरमान वे,
संग तेरे टुर्र गई सी साड्डी जान वे,
तेरी यादांच वसां मैं सजना पूरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
रंग मेंहदी दा लगदा लहू वे,
तक्का आईना ते लगदा है तू है
मेरी रूह ते है छाप सजना तेरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
नाम तेरा मेरी पहचान वे,
कोई सद्द दे ते लगदी अजान वे,
तेरे नाम दी मिसरी रहे घोली,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
दुआ न कोई होर मंगदी ।
तेरे पैरां च अखीर होवे मेरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
सानु वस्ल दा, न कोई अरमान वे,
संग तेरे टुर्र गई सी साड्डी जान वे,
तेरी यादांच वसां मैं सजना पूरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
रंग मेंहदी दा लगदा लहू वे,
तक्का आईना ते लगदा है तू है
मेरी रूह ते है छाप सजना तेरी,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
नाम तेरा मेरी पहचान वे,
कोई सद्द दे ते लगदी अजान वे,
तेरे नाम दी मिसरी रहे घोली,
दुआ न कोई होर मंगदी ।
Wednesday, June 24, 2009
लाली
बात बाँध ले आज तू,
रंग कभी न छूटेगा,
जितना बहेगा, उतना खिलेगा,
न बाँट इसे तू पाएगी
मेरे रंग में रंग जायेगी, जित्त देखेगी उत्त पाएगी,
लाली देखन जो आएगी, तू भी लाल हो जायेगी
बदन तूने जो अब तक पाला है,
एक ही पल में रंग डाला है,
न हाथ लगाया न छुआ,
सब नयनों से ही हुआ,
अब घूमेगी छाप लिए,
नाम का मेरे जाप लिए,
न भाले न तीर से मारा,
इस वार से कैसे बच पाएगी,
मेरे रंग में रंग जायेगी, जित्त देखेगी उत्त पाएगी,
लाली देखन जो आएगी, तू भी लाल हो जायेगी ।
घमंड से सब कुछ बोल गया,
दो शब्दों में तोल गया
राज़ गढाए रखा था,
दो बात कही, खोल गया ।
लाली मेरे यार की, जित देखूं उत्त लाल
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
बदन पर लिपा तो न था,
रंग बेरहम कहाँ से लग गया,
नयनों से सन गया,
बदन धोखेबाज, ठग गया,
रक्त भर भर आंखों में,
पलकों से लगाया,
अन्दर बहा, बाहर सना,
अन्दर बाहर एक हुई मैं, जैसे रही न खाल।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
अंग का जैसे दाना-दाना,
बुने है नया ताना-बाना,
लहराती थी मनचली थी,
जब नयनों की गाथा न चली थी,
रंगा अपने रंग में उसने,
थी काली उसकी चाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
अकेले में दोहराती हूँ,
बातें उसकी मिसरी सी,
सरफिरी सरफिरी सरफिरी
सरफिरी सरफिरी ... सरफिरी सी
एक डोर पे जैसे घूमे लट्टू,
ऐसी मलंगी चाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
काश कभी ऐसा पल आता,
रंग मेरा उस पर चढ़ जाता,
रूप मेरा बाँध बनाता,
रूप मेरा तोड़ जाता,
मुझ से परे वो रह न पाता,
'तू' कह वो मुझसे कह न पाता,
मैं बुनती, वो फँस जाता,
मेरे शब्द वो कह जाता, ऐसा अघोरी जाल,
लाली मेरे लाल की, जित्त देखूं उत्त लाल
लाली देखन मैं गया, मैं भी हो गया लाल ।
लाली देखन मैं गया... मैं गया... मैं गया...
मैं भी हो गया लाल!
रंग कभी न छूटेगा,
जितना बहेगा, उतना खिलेगा,
न बाँट इसे तू पाएगी
मेरे रंग में रंग जायेगी, जित्त देखेगी उत्त पाएगी,
लाली देखन जो आएगी, तू भी लाल हो जायेगी
बदन तूने जो अब तक पाला है,
एक ही पल में रंग डाला है,
न हाथ लगाया न छुआ,
सब नयनों से ही हुआ,
अब घूमेगी छाप लिए,
नाम का मेरे जाप लिए,
न भाले न तीर से मारा,
इस वार से कैसे बच पाएगी,
मेरे रंग में रंग जायेगी, जित्त देखेगी उत्त पाएगी,
लाली देखन जो आएगी, तू भी लाल हो जायेगी ।
घमंड से सब कुछ बोल गया,
दो शब्दों में तोल गया
राज़ गढाए रखा था,
दो बात कही, खोल गया ।
लाली मेरे यार की, जित देखूं उत्त लाल
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
बदन पर लिपा तो न था,
रंग बेरहम कहाँ से लग गया,
नयनों से सन गया,
बदन धोखेबाज, ठग गया,
रक्त भर भर आंखों में,
पलकों से लगाया,
अन्दर बहा, बाहर सना,
अन्दर बाहर एक हुई मैं, जैसे रही न खाल।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
अंग का जैसे दाना-दाना,
बुने है नया ताना-बाना,
लहराती थी मनचली थी,
जब नयनों की गाथा न चली थी,
रंगा अपने रंग में उसने,
थी काली उसकी चाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
अकेले में दोहराती हूँ,
बातें उसकी मिसरी सी,
सरफिरी सरफिरी सरफिरी
सरफिरी सरफिरी ... सरफिरी सी
एक डोर पे जैसे घूमे लट्टू,
ऐसी मलंगी चाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
काश कभी ऐसा पल आता,
रंग मेरा उस पर चढ़ जाता,
रूप मेरा बाँध बनाता,
रूप मेरा तोड़ जाता,
मुझ से परे वो रह न पाता,
'तू' कह वो मुझसे कह न पाता,
मैं बुनती, वो फँस जाता,
मेरे शब्द वो कह जाता, ऐसा अघोरी जाल,
लाली मेरे लाल की, जित्त देखूं उत्त लाल
लाली देखन मैं गया, मैं भी हो गया लाल ।
लाली देखन मैं गया... मैं गया... मैं गया...
मैं भी हो गया लाल!
Tuesday, June 23, 2009
दुकान
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
सब कुछ बिकाऊ है,
सुंदर है, सस्ता टिकाऊ है,
एक तरफ़ है कथा का बक्सा,
दूसरे में है व्यथा का चस्का,
रखे हैं सारे एहसास मरतबानों में,
कहानी और किस्से, भरे पड़े खानों में,
रोमांचक मोडों का, उधर बीच में, अम्बार है,
बहार लगी किरदारों की कतार है,
हाथों में सबकी जान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
छोटी छोटी बोतलों में भरी, कहानी मिलेगी,
बस यूँ थाली में डालो, खोयी जवानी मिलेगी,
बोरियां भर भर राखी हैं रिश्तों से,
चलो निभाते रहना किश्तों में,
आते जाते खाने वाला सामान, सामने शीशियों में रखा है,
पकाने के बाद, हथेली पे ले, सब कुछ चखा है,
ग्राहक को अपना भगवान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
कहने को दुकान है, हर तरह का सामान है,
चाय की पत्ति से लेकर, चुस्कियों के आनंद तक,
सपनों के डेरे,
सच्चाई के घेरे,
अरमान चढाये चूल्हे पर, पक जायंगे तो स्वाद देंगे,
आज को आज, कल को याद देंगे,
कागज़ पर लिख हम सारी फरियाद देंगे,
मुठी भर सपने, ५०० ग्राम अरमान लिए
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
सब कुछ बिकाऊ है,
सुंदर है, सस्ता टिकाऊ है,
एक तरफ़ है कथा का बक्सा,
दूसरे में है व्यथा का चस्का,
रखे हैं सारे एहसास मरतबानों में,
कहानी और किस्से, भरे पड़े खानों में,
रोमांचक मोडों का, उधर बीच में, अम्बार है,
बहार लगी किरदारों की कतार है,
हाथों में सबकी जान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
छोटी छोटी बोतलों में भरी, कहानी मिलेगी,
बस यूँ थाली में डालो, खोयी जवानी मिलेगी,
बोरियां भर भर राखी हैं रिश्तों से,
चलो निभाते रहना किश्तों में,
आते जाते खाने वाला सामान, सामने शीशियों में रखा है,
पकाने के बाद, हथेली पे ले, सब कुछ चखा है,
ग्राहक को अपना भगवान लिए,
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
कहने को दुकान है, हर तरह का सामान है,
चाय की पत्ति से लेकर, चुस्कियों के आनंद तक,
सपनों के डेरे,
सच्चाई के घेरे,
अरमान चढाये चूल्हे पर, पक जायंगे तो स्वाद देंगे,
आज को आज, कल को याद देंगे,
कागज़ पर लिख हम सारी फरियाद देंगे,
मुठी भर सपने, ५०० ग्राम अरमान लिए
निकल पड़े हैं दुकान लिए ।
Thursday, June 18, 2009
बेफिक्री
यह किस प्यारी हिफाज़त में हो, बेफिक्री की हालत है
बड़ी मज़बूत बाहों में हो सूरज की हरारत है,
तुम्हारे वास्ते तूफ़ान सह लें, मुस्कुराओ तुम
जियो हर लम्हा तुमको ज़िन्दगी पीने की आदत है.
बैठे हुए ही कन्धों पर, पकड़े हुए ये उँगलियाँ,
मुस्कान दे दें वसीहत में, रखा क्या नसीहत में
धुप घुली चेहरे पे, किरणों की शरारत है,
जियो हर लम्हा तुमको ज़िन्दगी पीने की आदत है.
पहियों से कदम मिलाना, ऊंघते सपने सहलाना,
नज़र भर नज़ारा सौंप देना, नज़र भर अपनाना,
रहे एहसास बन कर तो, रगों में ही जन्नत है,
जियो हर लम्हा तुमको ज़िन्दगी पीने की आदत है.
Saturday, June 13, 2009
भाप
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।
बाहर का मौसम गर्म था, नम था,
अन्दर बर्फ पड़ी थी,
कोई कहानी, पन्नों पर बिखरने को,
हर्फ़ हर्फ़ लड़ी थी,
सच्चाई निकलती कैसे,
उम्मीदें रस्ते में खड़ी थी,
अन्दर घुसने को आंसू बन,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।
नज़र को छान रही थी,
मन में ठान रही थी,
आंधी का जज़्बा लिए,
ऊंघती सी, जैसे थमी थी,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।
बाहर का मौसम गर्म था, नम था,
अन्दर बर्फ पड़ी थी,
कोई कहानी, पन्नों पर बिखरने को,
हर्फ़ हर्फ़ लड़ी थी,
सच्चाई निकलती कैसे,
उम्मीदें रस्ते में खड़ी थी,
अन्दर घुसने को आंसू बन,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।
नज़र को छान रही थी,
मन में ठान रही थी,
आंधी का जज़्बा लिए,
ऊंघती सी, जैसे थमी थी,
खिड़की के कांच पर भाप जमी थी ।
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