Sunday, July 27, 2008

सूरज

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है।

छुपता है बादलों के पीछे,
आज तू देख नीचे,
नीचा दिखाना है तुझे,
बुझा न पाया तो,
कुछ मंद बनाना है तुझे,
बहुत उगली आग तुने,
अब तुझ पे अंगार उंडेलना है,

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

तुझे छीलूंगा,
तो रोशनी नाखूनों में भर जायेगी,
तपन, खाल में घर कर जायेगी,
फिर भी निहथा आऊंगा,
तेरी जिद्द को अपनी जिद्द से मिलवाऊँगा,
तेरी ही आग में तुझे जलाऊँगा,
समेट ले जिन किरणों को समेटना है,

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

नया दिन, नई रोशनी,
इसी बात का न तुझे गुरूर है,
नही बदलती जिंदगी,
ये तेरा ही क़सूर है,
हँसता है, मज़ाक उडाता है,
रोज़ वही कहानी लिए आ जाता है ।

पर अब और नही,
न नई रोशनी, न नया दिन,
न नई उम्मीद, न पल कठिन,

कल ये किस्सा ख़त्म,
अब बस तेरे लिए थोडी संवेदना है ।

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

कल सुबह फिर रात होगी ।
न होगा कल, न कल की बात होगी ।

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