Friday, July 18, 2008

आज चाँद पूरा है

आज चाँद पूरा है,
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे।
ढकेंगे, छुपायेंगे, दफ्न कर देंगे नूर,
आदत नही है ये, है गुरूर,
हर रेशे को चुन-चुन, क़त्ल किया जायेगा
आज फिर हिज्र को तमगा-ऐ-गुनाह-ऐ-वस्ल दिया जायेगा।

घेरा जायेगा फिर माहताब को,
आसमान भर के साये, फ़क़त एक हरारत पर उतर आयेंगे ।
आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे

हर सितारे के क़स्बे पर हक़ जमाने की कोशिश को,
आज फिर नाकाम किया जायेगा,
सदियों से चली आई इस अदावत को,
आज तमाम किया जायेगा
नज़रों में लहू आज आया है,
आज के फैसले रिवायत पर उतर आयेंगे
आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे
क़स्बे, रियासतें, होंगी लहुलुहान,
सदियाँ करेंगी बखान,
आज टुकड़े होंगे,
सदियों दुखड़े होंगे,
इनायत हुई अगर तो,
कबीलों के काफ़िले विलायत पर उतर आयेंगे

आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे
कल चाँद कटेगा,
कल चाँद कटेगा ।

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