Thursday, July 10, 2008

मैं मर रहा हूँ

शायद ख़ुद को खुदा समझा है, इसी लिए ये जुर्रत कर रहा हूँ,
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ।

मेरा सच, करोड़ों का झूठ है, उनका झूठ मेरा सच,
उन्हें मुझसे खेद है, मुझे उनसे हर्ज,
खुदाई में बंदगी से डर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ।

न किसी के अश्कों की मैं वजह बना,
फिर भी हर अश्क की वजह हूँ,
कहने को इक तरफ़,
फिर भी हर जगह हूँ,
बंदगी में खुदाई से डर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ


ज़्यादा खुशी और ज़्यादा ग़म में फर्क नहीं,
दोनों में ही भीगती हैं आँखें,
दोबारा चलने से पहले,
एक पल रुकती हैं सांसें,
उस एक पल की मौत में जिंदगी भर रहा हूँ,
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ


मेरी नज़रों के प्यार को तरसता हो कोई,
ख़ुद से नफरत हुई जाती है ऐसे प्यार से,
जिंदगी ने खूब देखा मुझे इस ओर से,
अब जिंदगी को मैं देखूँगा उस पार से
बिखरे लम्हों से ख़ुद को समेट, संवर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ

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