Thursday, July 24, 2008

सच

आंखों से आंसू टपकाते,
बार-बार पलकें झपकाते,
खड़े पैरों पर डगमगाते... आते,
मुझसे बोली, "आप नहीं समझोगे... आपके पास माँ का दिल नहीं है न ।"


सच भी है - बच्चे ने "माँ" कहा था पहले,
"बाबा" कहने में कुछ दिन लगे थे,
माँ की उस जीत पर,
पिता ने कई आंसू ठगे थे,
सुबह दो नन्हे हाथ,
सिर्फ माँ की ही गर्दन से लगे थे,
मामूली सी खांसी पर जब,
रात भर माँ-बाबा दोनों बराबर जगे थे।


एक हाथ में दामन का कोना,
दूसरे में मेरी ऊँगली रही थी,
चलना सीखा, छूठी ऊँगली,
हर शाम तो उसके बाद भी, माँ के दामन में ही ढली थी।

जलती पूरियों का दोष ख़ुद पे लेता,
क्यूँ न हो? था तो - "अपनी माँ का लाडला बेटा" ।

हर सवाल, हर राज़, हर बात,
माँ के ही कानों में पहले पड़ती,
शायद मेरे दुःख में, मेरे आंसू शामिल नहीं हैं न,
क्या करुँ ? मेरे पास माँ का दिल नहीं है न ।

सालों बाद आज जब घर लौटा है,
माँ के गले लग, बच्चे की तरह रोता है,
पता नहीं क्यूँ माँ को देख, आँखें भावी हो जाती हैं,
पिता के आगे, सारी शिकायतें आंसूओं पर हावी हो जाती हैं ।

पर आज गले लगा तो, गला भर आया,
सालों का ग़म, आंखों में उतर आया,
पुछा मैंने, "क्यूँ तेरी माँ, तेरे पीछे, तेरे आगे, इतना रोती है?"
सोचा... फिर बोला... " आप नहीं समझोगे बाबा, आपके पास माँ का दिल नहीं है न ।"

बीते साल, एकाएक, मेरे सामने उतर आए
आज इस पिता के आंसू भर आए।
मुझसे बोला, "बाबा आप को क्या हुआ ?"

मैं मुस्कुरा के बोला, "तू समझेगा पर कई सालों बाद...

"तू समझेगा...

पिता का दिल है न ।

1 comment:

Dasbehn said...

Now this, I understood. It was simple yet beautiful.. very old argument this one.. who is more important to the child.. ma or baba... i've asked myself the question numerous times.. and I still dont have an answer! :-))