उल्फ़त के लिए याद करेगा ज़माना हमको
जीने का सबब ही मरने की वजह हो गया
जिस दर्द की उम्मीद में जीते रहे
जाँ तक आते आते सज़ा हो गया
क़त्ल तो क़त्ल है फिर भी
नज़र-ए-शौक़ से हुआ तो अदा हो गया
ये दिल जब तक रहा बेज़ार रहा
काम का हुआ तो क्या हो गया
पहले पहल चैन और अब ये आखरी दर्द
जो था उनके नाम से हवा हो गया
मैं न रहा बन्दा न रहा
जब से कोई ख़ुदा हो गया
सुना है हर घर में नाम हमारा लेते हैं
छोटी सी बात से नाम बड़ा हो गया
ख़त मेज़ पर ही पड़ा रहा रात भर
अब ये मर्ज़ बेदवा हो गया
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