Sunday, June 24, 2012

अच्छा

क्या ऐसा नहीं हो सकता
के मैं बेदस्तक, दबे पाँव
आ जाऊं और बैठ कर देखा करूँ

देखूं जब मेरे रोज़ मर्रा के फैसले तू ले
और मैं हाथ में चाय का कप लिए
ऊंघती आँखों से मुस्कुराऊँ
देखूं
जब तू छीन ले सब मुझसे
और बात न करे अब मुझसे
न तू मुझसे करे सवाल
के क्यूँ ताकता मैं हूँ
देखूं
जब खेल के मेरे आंसुओं से
तू ज़ख्म इलज़ाम दे मुझे
जब थाम के हाथ तू काट ले मुझे
देखूं
जब थक के शाम को
तू पड़ जाए बिस्तर पर
और गुस्सा अपना मुझ पे निकाले
मारे दो थप्पड़ और चूम के होश उड़ा ले
क्या ऐसा नहीं हो सकता
के मैं बेजान, लिए घाव
आ जाऊं और बैठ कर देखा करूँ

तेरे हाथ से दूध की थैली फिसले, बिखरे
किसी राह चलती बिल्ली का नाश्ता हो
देखूं
जब आँख से निकले आंसू लापता हों
जब नाराज़ रहे तू मुझसे
और जब आवाज़ दे मुझे
तो मैं न आऊँ पहले
फिर पल में आ जाऊं
क्या ऐसा नहीं हो सकता
के मैं बेजुबान, गूंगे भाव
आ जाऊं और बैठ कर देखा करूँ

दोपहर के बादल से तू बात करे
और वो टूट के बरसात करे
जब किसी कबूतर की बीट
गिरे सर पे तेरे, मैं हंसूं और
किसी अच्छी खबर का इंतज़ार करूँ
सड़क पार करते हुए कोई गाड़ी उड़ा दे तुझे
टांकें लगें मुंह के अन्दर
न बोल सके तू और मैं बात करूँ
देखूं
जब तू कुछ चबा न पाए
जब दर्द से कार्राहे
आंसू न आये पहले
फिर पल में आ जाए
क्या ऐसा नहीं हो सकता
के मैं बेनिगाह, पूरे ताव
आ जाऊं और बैठ कर देखा करूँ

जब जोड़ों में दर्द रहने लगे
दूर का कम दिखने लगे
बच्चे कटे कटे
बच के निकलने लगें
पीठ पीछे बुराइयाँ करें सब
जब तू बालों में चांदनी भर दे
हड्डियों को पानी कर दे
अगले दिन की बात हो
फिर पल में रात हो
मैं बेलगाम, खुली नाव
आ जाऊं और बैठ कर देखा करूँ
क्या ऐसा नहीं हो सकता ?

हो तो सकता है शायद
पर न हो तो अच्छा
या हो जाए तो अच्छा शायद
हो जाए तो अच्छा
तो हो ही जाए
या न हो तो बेहतर
पर हो जाए तो अच्छा

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