Sunday, April 8, 2012

चाँद वाला आदमी

मस्त चाल चलते थे वो

न दीन-दुनिया की चिंता
न कोई उनके लिए ख़ास दिन था
रातों से ख़ासा लगाव था शायद
चाँद सा कोई घाव था शायद

समेटने को कुछ था नहीं
पर थैलियाँ जमा करने का शौक़ था
मिठाईयों का ऐब कह लो चलो
पर हंसी का उनको ज़ौक था

झूलते से, लटकते से
चुटकियाँ बजा बजा के चलते थे
जैसे हर चीज़ का अचम्भा हो
ऐसे आँखें मलते थे

एक थैली में बंद कर रखे थे भगवान्
जैसे बुतों में बसी थी उनकी जान
बैठ कर उनके सामने कोई भी बात कह लो
किसी को खबर न होगी कानो-कान

सिर्फ ठन्डे पानी से नहाते थे
और अपने पजामे का नाड़ा ख़ुद ही बांधते थे
बिन शब्दों के बात करते
आवाज़ में भाव कह जाते थे

रात रात रोना शुरू कर दिया था कुछ दिनों से
उखड़े उखड़े रहने लगे थे अपनों से
अस्पताल भी सीटी बजाते हुए गए
रिश्ता जुड़ने लगा था सपनों से

घंटों चाँद ताकते
जैसे पडोसी की खिड़की हो
ऐसे आसमान में झांकते
और उन्हें चाँद सा कोई घाव था शायद

एक बंधी ज़िन्दगी चलती रहेगी
कुछ दिन को दिनचर्या में कमी खलती रहेगी
अब कमरे की दीवारें हाथ मालती रहेंगी
थैलियाँ चैन की सांसें लेती रहेंगी
अब रात कमरे से रोने की आवाजें नहीं आएँगी
थैलियों में बंद भगवान् रिहा हो गए
बहुत चालू थे, जाने का वक़्त भी क्या चुना
चाँद पूरा है आज

एक तरह से अच्छा है
हम और वो - दोनों रिहा हो गए
पर तब हुए, जब बंधन की आदत हो चुकी थी
पर आदत का क्या है
साँसों सी है
एक दिन छूट ही जायेगी
जब रोज़ खाली कमरा दिखेगा
अपने आप उम्मीद टूट जायेगी

१०० मुश्किलों को पल में हल गए वो
मस्त चाल तो चलते थे
पर क्या मस्त चाल चल गए वो ।

1 comment:

Garima said...

speechless...in tears...unbelievable writing. u just said all thats been going on in my head ever since. and trust me, it cant be said better. how do you manage to feel this way for people without ever showing it sid? :-( its just amazing. reading it again, crying again. i will never get over this one. you are blessed.