Wednesday, January 7, 2009

तर्क

तर्क की तलाश तमाम हुई ।

ख़लिश और सुकूँ में,
कोई बात अब नही जुनूँ में,
जज़्बातों का जज़्बा ज़ब्त हो चला,
रुख़सत रूह से हर रब्त हो चला,
खलता कल तक था जो खला,
ख्वाम्ख्वाह ख़ास अब ये कम्बख्त हो चला,
आरजू की अब शाम हुई,
तर्क की तलाश तमाम हुई ।

मुआएना किया मासूम मजबूरियों का,
दवा बन दफ़्न हुई दर्दनाक दूरियों का,
लम्हों की लाशें लाद कर लायी गई,
जनाज़ा जन्मा जले हुए जज़्बातों का,
उम्र ऊब उठी थी उन्स से,
नश्तर के निशाँ निकले नब्स से,
आंसुओं की आस भी हराम हुई
तर्क की तलाश तमाम हुई ।

फिकरे फ़क़त फिरोज़ - ऐ - फ़र्ज़ पर हुए,
मशवरे मासूम मातम - ऐ - मर्ज़ पर हुए,
कुरेद कुरेद कर कब्जे कस्म - ऐ- क़र्ज़ पर हुए
खुदा ख्वाहिशें भी खत्म कर दे,
ज़र्रे ज़र्रे में जिस्म के ज़रा सा ज़ख्म कर दे,
हमेशा, हर बार, हरा रहे,
ख्वाहिशों की ख़लिश सा खरा रहे ।

ग़लत ग़म का गुरूर नही,
संभला साँसों से सुरूर नही,
दरीचा - ऐ - दर्द की दोनों ओर देखा,
मैं ही था उसमें जो ग़मगीन था,

अब हर साँस मेरी हराम हुई
तर्क की तलाश तमाम हुई

तर्क की तलाश तमाम हुई

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