Thursday, January 8, 2009

तर्क - 2

तर्क की तलाश तमाम हुई ।

करेंगे आसमाँ के अब्र अब अदावत अदा,
पर जुर्रत के जुर्माने का जुनूँ है जुदा,

पाक़ पैमानों पर परदा पेश हो, कर दो पोशीदा,
रूह में रवां रंज का रंग रहे रंजीदा,
खूँ का खुलूस खुबखु है,
रूह से रुखसत रूमानी, अब रूबरू है ।
फिर फिरदौस की फिराक़ में,
ताज़ी तकदीर की ताक में,
रवां रह गए रब्त राख में,
ख्वाबों की खाली ख़ाक में ।
गुबार की गुफ्तगू गुलाम हुई
तर्क की तलाश तमाम हुई ।

माहौल में मातम मर्ज़ का,
दास्तान-ऐ-दर्द दफ्न, पर दर्ज़ था,
आंखों में अश्क अब अच्छे लगते हैं,
ठहर ठहर ठिकाना ठान के ठगते हैं ।
मुक्कम्मल मुश्क का मुक़ाबला है ,
झोंकों के झरोखों से झांकता है
लहू की लाली लश्कर-ऐ-लगाम हुई ।
तर्क की तलाश तमाम हुई ।

बेबस, बेखौफ पर बहुत बिस्मिल हूँ,
मयकदों में महफूज़ महफिल हूँ,
मंज़र मंज़र मेरा, मैं मंजिल हूँ,
गुज़रते गुबार की गुज़ारिश,
सागर का संगदिल साहिल हूँ ।

आयतों की आस हूँ,
सजदों का सफ़ेद सबब
कफ़न का काला काफ़ हूँ
लफ्जों का लहू,
मज़हब का मतलब,
जन्नत की जुस्तजू,
मौत में मैं माफ़ हूँ ।
हर्फ़ का होंसला,
ख्वाहिश का खला हूँ,
नुमायाँ में नुमां,
पाकीज़गी पे पला हूँ ।

ज़मीन का ज़र्रा ज़र्रा,
कायनात का कोना कोना,
आफताब की आग,
माहताब की मेहर मैं,
लहू की लाली का लहजा,
कुर्बानी का कहर मैं ।

इश्क की इबादत,
अदावत की अकीदत हूँ
गुरूर का गुस्सा,
माफ़ी की मोहलत हूँ ।
मय की मयकशी,
शौक़ की शोहरत हूँ
सुकूं का सिलसिला भी,
सिलसिला -ऐ - सुकूं भी,
जुनूँ का जज्बा भी मैं,
जज्बा-ऐ-जुनूँ भी
तुझ में तुझ सा,
मुझ में मुझ सा मैं ।

तुझ में तेरी, मुझ में मेरी,
ता-उम्र तराशी तमन्ना तमाम हुई,
तकदीर की ताबीर
ता-उम्र तराशी तमन्ना तमाम हुई,

तर्क की तलाश तमाम हुई ।

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