Friday, January 23, 2009

रंग

सपनों में रंग लगा है पक्का ।

मुट्ठियाँ कस ली हैं, इस रंग को मिटाना है,
कितनी नींदें खो कर सींचा है इन्हें,
रात रात भर, अंधेरोंसे खींचा है इन्हें,
अब इस रंग को मुझे अपना रंग दिखाना है ।

ढँक दिया है सारे सपनों को,
कफ़न सा बन उन पर फैला है,
इसकी ओट से झांकता है,
हर सपना अब लगता मैला है
जैसे शेहद पर नमक है रखा
सपनों में रंग लगा है पक्का

खुश था मैं बेरंग सपनों से,
आस बांधते अपनों से,
अचानक कहाँ से आ धमका ये,
बेरंगी में रंग क्यूँ चमका ये,
नींद से जगा दिया है,
नया जुनूँ लगा दिया है,
मिटा दूँगा इसे,
हटा लूँगा इसे,
मेरे सपनों पर सिर्फ़ हक़ है मेरा
सपनों में रंग लगा है पक्का ।

दम घुटने लगा है सपनों का,
साँसे अटकती हैं,
पुतलियाँ आंखों में,
हताश हो भटकती हैं,
पर इतनी जल्दी ये साँसे छोडेंगे नही,
जान से पाले हैं, दम तोडेंगे नही,
मुझसे किया है वादा सेहर तक का ।

सपनों में रंग लगा है पक्का ।

पर इस बार नींद से जागूँगा नही,
सपनों से दूर भागूंगा नही,
हाथ थाम कर धीरे धीरे,
एक एक कर निकाल लाऊँगा उन्हें,
बेदाग़ बेरंग फिर शायद पाऊंगा उन्हें
जिन्हें रंग दिया होगा इसने,
फिर शुरू से सजाऊँगा उन्हें ।
करूंगा डट कर उस रंग का सामना,
डालूँगा उस में डर की भावना,
सब गाते उसकी खूबसूरती के राग हैं,
पर मेरे लिए वो
मेरे सपनों पर दाग़ है ।

रंग सारे मिटा दूँगा,
सिर्फ़ उजाल रह जायेगा,
बाकी सब धीरे धीरे,
उसी में बह जायेगा,
सब बेरंग हो जायेगा,
फिर न कोई सपने रंग पायेगा,
साफ़ सुथरे धुले धुले से,
पानी के बुलबुले से,
फिर कोई सपनों को न रंग पायेगा,
उजालों में उजला मलंग पायेगा,
सब इस रंग का ही दोष है,
आज जो ज़माना फरामोश है,
हर कोई अपनी ही तरह खिलता है,
जिद्दी है, न किसी से मिलता है
पोंछ दूँगा, उजला कर दूँगा,
सदियों से गंद जमा है रखा,
सपनों में रंग लगा है पक्का ।

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