पिछले कुछ दिनों से मैं सोच रहा था,
क्यूँ आज कल हर किसी को मुझ में,
बस कमियां नज़र आती हैं।
सिर्फ और सिर्फ ऐब ।
क्या हुआ क्या है?
शायद अब सब ग़लत कर रहा हूँ मैं,
या फिर शायद पहले से थोडा बदल रहा हूँ मैं
बहुत कारण दिए मैंने खुद इसे,
पर समझ में आता नहीं,
क्यूँ सबको मुझ में
बस कमियां नज़र आती हैं
बहुत सोचा, फिर सोच कर,
एक फैसला लिया,
अब नहीं सोचूंगा।
पहले भी तो नहीं सोचता था,
एक बात तो तय है,
पहले मुझसे उम्मीदें शायद कम थी,
तो सब मुझ में अच्छाई ढूँढ़ते थे,
तो सिर्फ अच्छाई नज़र आती,
अब जब उम्मीदें हैं,
तो सिर्फ कमियां ढूँढ़ते हैं,
वो, जो मेरी जगह होना चाहते हैं,
वो, जो मुझसे आगे रहना चाहते हैं,
वो, जो अब तक साथ रहे,
वो, जो साथ रहना चाहते हैं,
वो सब मुझ में बस कमियां ढूँढ रहे हैं,
तो सब को आज कल मुझ में,
बस कमियां नज़र आती हैं ।
नाम अलग है, है अलग बस मेरी पहचान,
जो ढूँढोगे वो पाओगे,
मैं हूँ इंसान ।
1 comment:
Yeh aaj hi padha... pata nahi kaise reh gaya tha.
I like this better than your new pieces which use english words. ek do thik hai beech beech mein.. but somehow.. those dont seem to be yours... if you know what I mean.
I especially do not understand the "silent type" poems... :-)
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