उर्दू में अपना सुकून ढूँढता हूँ,
इस मौसिक़ी से सराबोर भाषा में
अपना खोया जूनून ढूँढता हूँ .
ज़फर की शायरी का खून ?
नज़ाकत में आने वाला 'नून' ?
ग़ालिब के अशआरों का मजमून ?
न ऍन, गेन, का हुस्न है मुझ में
इस मौसिक़ी से सराबोर भाषा में
अपना खोया जूनून ढूँढता हूँ .
ज़फर की शायरी का खून ?
नज़ाकत में आने वाला 'नून' ?
ग़ालिब के अशआरों का मजमून ?
न ऍन, गेन, का हुस्न है मुझ में
न जीन, शीन से खूबसूरत मोड़
न गाफ़ लिखने का तोड़
न गोल 'ये' का जज़्बा,
जो अक्षर का लिंग बदल सकूं
न फिरंगी फ़ारसी का हम्ज़ा,
न 'छे' से पेट में बिंदु हैं,
न 'खे' सा सर पर टीका
'दो चश्म हे' सा भी नहीं दिखता मैं
'से' सा भी तो नहीं बिछता मैं
शायद हर्फों में न हूँ,
शायरी में छिपा हूँ
पर नज़्मों या रुबाई के साथ भी तुक नहीं बैठता मेरा,
ग़ज़ल के बहाव से भी अनजान हूँ
जानता हूँ, शेहेंशाह नहीं हूँ कोई,
इसी लिए नहीं ढूँढा ख़ुद को कसीदों में
इतना नहीं मैं शैतान हूँ
न किसी शायर की मसनवी में
न बोलचाल वाली लखनवी में
न आधे अक्षर का डर हूँ,
मैं वो हूँ,
जो वक़्त की मार से,
सबसे पहले वर्क से मिट जाता हूँ,
जो न मतलब बदले,
न सबब बदले,
लिखते हुए कलम फिसले तो मैं
अक्षर से लिपट जाता हूँ
बोलने वाले के गले को खटकता हूँ,
उर्दू का ज़ौक कहते हैं कुछ लोग,
ज़र्रा हूँ छोटा सा,
बस छोटा सा नुख्ता हूँ .
5 comments:
उर्दू लेटर्स का इस्तेमाल कविता में ! बहुत खूब !
शब्दों का खुबसूरत प्रयोग साधुवाद
शब्दों का खुबसूरत प्रयोग साधुवाद
बढ़िया
Bahut badhiya
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