Tuesday, February 15, 2011

रिक्त


मेरा स्थान मुझको साधे,
अतिरिक्त रहे, बस रिक्त रहे ।

एक ही पल में किस मोड़ पर,
आ कर मैं खड़ी हो गयी,
सालों का तो पता नहीं,
पर सब ने कहा - मैं बड़ी हो गयी
शीशे से लाज आने लगी,
जिस पिता की आँखों में प्रेम था,
उस में चिंता आज आने लगी ।

जैसे सपनों से नयन भरे,
लेकर पग डरे डरे,
राजमहल में आई मैं,
तेरहवीं रानी कहलाई मैं ।

हर रानी सा मेरा भी,
ये! बड़ा सा कमरा था,
गहनों का संदूक अलग,
रूप आपों-आप संवरा था,
बस एक बार देखा था उनको,
आँखों में तेज, चन्दन था माथे पर,
तोंद थी हलकी सी, तलवार दाईं तरफ लगाते थे,
शायद बायें हाथ से खाते थे ।
कुछ तो था नयनों में उनके,
मुझं पर पड़े थे, ३ बार गिन के,
मैं तो मानो जम गयी,
जब भी मुझ पर उनके नयन पड़े,
आंसू निकले बड़े बड़े ।

बाक़ी की सब मुझको,
तेरहवीं कह-कह छेड़ा करतीं,
पकड़ कलाई रोज़ मेरी,
बाज़ू को रह-रह टेढ़ा करतीं,
एक तो थी ४० साल की डायन,
पान चबा, पढ़ती रोज़ रामायण
कैकयी से था प्रेम उसे,
बहु समझती थी ससुरी मुझे ।
नाम किसी ने न पुछा मेरा,
अच्छा है, रिश्ता न जुड़ा,
मैं सांप-सीढ़ी में हमेशा हार जाती,
जो आती, बाज़ी मार जाती।

एक सुबह जब उठी मैं,
सिन्दूर का डिब्बा बिखरा पड़ा था,
फर्श लहुलुहान हुआ पड़ा था,
फिर देखा तो बिस्तर पर,
छींटें पड़ीं थीं सिन्दूर की,
पर जब जाना सच मैंने, तो डर भागी मैं,
पहली रानी के कमरे में
खूब हंसी वो पहले तो,
कहा - अब हर महीने होगा ये ,
फिर भेजा किसी को, कुंवर से कहने को ।

३ महीने ब्याह को हुए,
रोज़ अकेली सोयी थी,
आज अमावस्या की रात पता चला,
राजाजी ने बुलवाया है ।

रात न जाने क्या हुआ,
प्रेम से हाथ अब भी कांप रहे थे,
आती थी अटखेली अब भी,
रगों में जैसे सांप रहे थे,
शीशा देखा तो देखा - शरमा रही थी,
बाहर से दो-चार आवाजें,
नाम मेरा बुला रही थी,
"मेरा नाम कैसे पता था इनको?
मैंने तो बताया था कभी,
उन में क्या एक हो गयी मैं?
अब रही मैं तेरहवीं? "

दोपहर पता चला के वो नहीं लौटेंगे अब ।
नीति उनको खा गयी,
आंसू न आये,
हलकी सी उदासी पर छा गयी,
अगले दिन उनके शरीर के साथ,
बारह शरीर और जले,
ऐसा वो कह गए थे - के मेरा नाम रहे १२ से परे,
मैं महाराज के पास गयी,
हिम्मत जुटा कर कह डाला उनसे,

" मेरा स्थान मुझको साधे,
जलने वालों की सूची में मेरे नाम का स्थान
अतिरिक्त रहे, बस रिक्त रहे

आज भी रिक्त है स्थान मेरा
अब भी जल रही हूँ मैं।
अब भी जल रही हूँ मैं ।

2 comments:

ritu said...

JUST THINKING HOW A MAN WRITE SO CLOSELY ABOUT FEELINGS OF WOMAN WHICH R VERY TRUE !!!!!!!!!!
MIND BLOWING YAAR !

Dasbehn said...

Loved it. Very nice...now please work on my requests... Khamosh sa afsana and Tinke ki tarah main beh nikli...?