Saturday, February 19, 2011

हरिवंश

जब मैं छोटा था,
"आ रही रवि की सवारी" पढ़ कर पागल हो गया था,
एक ही दिन में मानो,
अन्दर के कवी महोदय जाग उठे,
"आ रही चाँद की सवारी लिख डाली"
... हंसी आती है ।

कुछ साल बाद,
दिनकर, पन्त, निराला, महादेवी, जयेसी को पढ़ा,
MA हिंदी कर रही थी माँ,
शुद्ध हिंदी तो समझ न आई,
पर चस्खा लग गया,
'नीड़ का निर्माण', 'निशा निमंत्रण', 'एकांत संगीत'
क्या भूलूं, क्या याद करूँ,
मैंने तो मानो major कर डाला,
फिर कुछ सालों बाद,
हाथ लगी मधुशाला,
सारी घोल कर पी ली,
अब तक बेसुध हूँ ।

छायावाद, हालावाद, अब भी नहीं समझता मैं
पता नहीं कब, छायावाद शब्दों में आ गया,
फिर हाल ही में पढ़ी,
'रात आधी खींच कर मेरी हथेली,
... फिर 'रवि की सवारी' याद आ गयी ।
जिसे पढ़ कर लिखना शुरू किया था,
'रात आधी' पढ़ कर लगा,
लिखना छोड़ दूं ।

हरिवंश के बारे में पढ़ना शुरू किया,
ये सोच कर के,
कहीं से कोई connection ही निकल आये,
कुछ तो हो जो एक जैसा हो,
ख्याल न सही, शब्द ही सही,
सोच की गहरायी न सही,
छायावाद न सही, पर कुछ तो हो ।
बात फिल्मी है, पर क्या फ़र्क पड़ता है,
बात सच तो है
उसका जन्मदिन भी 27 नवम्बर का है ।

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