रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
हर राह जिस से हम साथ गुज़रे कभी
उन गलियों से मुझे घर छोड़ के जाने के लिए आ
हर शाम शमा जलाता हूँ अपनी मज़ार पे मैं
आ फिर तू किसी ग़ैर को जलाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
हर राह जिस से हम साथ गुज़रे कभी
उन गलियों से मुझे घर छोड़ के जाने के लिए आ
हर शाम शमा जलाता हूँ अपनी मज़ार पे मैं
आ फिर तू किसी ग़ैर को जलाने के लिए आ
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