Sunday, December 29, 2013

नुख्सान

इस इश्क़ - बाज़ारी में फ़क़ीर
कभी तो नुख्सान होना ही था

"ये शायरों की तरह पहेलियाँ मत बुझाओ यार"
"सीधा बताओ तो ऐसा क्या नुख्सान हो गया"

अरे कुछ नहीं
पहली दफ़ा ग्राहकी की हो जैसे
इस उम्र में भी बचकाना हरक़त कर दी
जो दिया उसने
बस झोले में डाला और चले आये
अबे क्या छूट गया वो तो देख लेते
हर बार कटा के चले आते हैं
अब चैन-ओ-सुकूँ जो गया
सो गया
निक्कम्मे हम दिल के मारे हम
ये सौदा उस पर आसान होना ही था

बहुत समझा के निकले थे ख़ुद को
बेटा सौदेबाज़ी है
जज़्बात की तुनतुनी न बजाने लगना
लो बज गयी न तुनतुनी
घर पहुंचे तो देखा
हर पल का इंतज़ार साले ने लिफ़ाफ़े में डाल कर दे दिया
अबे जब इश्क़ ज़िन्दगी बदलेगा
साथ मौत का सामान होना ही था

चलो कोई नहीं
लिफ़ाफ़ा सम्भालो।  मेज़ पर रखो।
पैर पसारो और हाथ सर के पीछे चढ़ा दो
निकालो Diary
अब पढ़ो शायरी
तुम साले अब लिखो शायरी
आशिक़ बनने का शौक़ है न बे
तो कहीं न कहीं
शायरी का अरमान होना ही था।

क्या समझे?
ख़ैर छोड़ो
सब समझ के हमने क्या उखाड़ लिया ?
अब भी खुद को नसीहत ही देते हैं
जीता वो करे, जो सब कुछ हार सके
इश्क़ वो करे , जो मन को मार सके
इश्क़ सा सुकूँ  न कुछ में
दुनिया को परेशान होना ही था।

2 comments:

Garima said...

What range!! Brilliant brilliant stuff :)) had to read twice to get it. Umr ke saath tajarba badha, tajarbe ke saath talent, phir toh shayari mein ye toofaan hona ho tha!! Superenjoyable!! Keep it up :))

Garima said...

What range!! Brilliant brilliant stuff :)) had to read twice to get it. Umr ke saath tajarba badha, tajarbe ke saath talent, phir toh shayari mein ye toofaan hona ho tha!! Superenjoyable!! Keep it up :))