ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया
ये शायद साँसों से कोई राब्ता रह गया
के यूँ तो हमें चलता मज़ार किया
बेबसी ख़ुद की पर फ़ितने कसते हैं हम
अपनी मायूसी पे ख़ुद अशआर किया
नींदों ने अब दस्तक भी न बख्शी
के इतना हमने उन्हें बेदार किया
हम तन्हा हसरत-ए-वस्ल लिए जागते रहे
बयान-ए-फ़ुर्कत उन्होंने सर-ए-बाज़ार किया
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