Tuesday, February 7, 2012

Middle क्लासिये

कुछ लोग free की नसीहत देते नहीं थकते हैं
उन्हें हम सारे फ़िज़ूलख़र्ची लगते हैं
उन्हें ये नहीं पता, हर चीज़ के लिए,
हम उनसे ज़्यादा घिसते हैं
भई हम so called नए ज़माने के लोग,
किश्तों में पिसते हैं ।

२० साल पहले चर्चे हो जाते थे,
जब घर पर Phone लग जाता था,
आज कल उस से ज़्यादा आसानी से
२० लाख का Loan लग जाता है
हर महीने जान खाने, आते फ़रिश्ते हैं
और हम, किश्तों में पिसते हैं

जितनी जल्दी आगे बढ़ने की है,
उतनी जल्दी zero balance होने की भी है
पहले
गेहूं ख़ुद पिसवानी पड़ती थी, अब पिसी मिलती है
idli के लिए दालें, अब पिसी मिलती हैं
पहले लोग मर्ज़ी से घिसवाते थे,
अब हर घर में ख़ुद-बा-ख़ुद घिसे मिलते हैं,
बड़े बड़े, बेवकूफ़ों से, आँखों में सपने लिए,
हम middle क्लासिये,
किश्तों में पिसते हैं ।

1 comment:

Garima said...

kaash ek saath pis jaaya karte...ye kishton mein pisna bada kathin hai! na gareebi ka gham hai na ameeri ke aib!!!kahan atke hain hum "middle classiye" i love that phrase! you know you took me back to the 'dharmyug' humour with this! the killer irony argument...very well put! entertaining stuff!