Sunday, December 18, 2011

हीर

रांझे और वारिस शाह की
है एक ही हीर ।

हीर से मन लगा बैठा,
रांझे से राकीबी जमा बैठा,
सुख़न का 'वारिस' एक
क्या ज़फर, क्या मीर ।

"होंठ सुरख याकूत जिऊँ लाल चमकण ठोडी सेब वालईती सार विच्चों,
दंद चम्बे दी लड़ी कि हंस मोती दाणे निकले हुसन अनार विच्चों "

सुन लेती जो हीर ये,
सांस गँवा जाती,
रांझे के चेहरे कि सुर्खी,
पल में हवा हो जाती
रांझे कि नज़र से तेज़
हैं वारिस के लफ्ज़-तीर ।

रांझे ने जो जोग लिया,
वारिस ने भी रोग लिया
एक कड़ी का उसका इश्क़
एक कड़ी इसका जुनूं
दोनों की तक़दीर,
जैसे बांधे ज़ंजीर ।

रिवायत है हिज्र की पंजाब में,
जाने कितने आशिक़
डूबे हैं ख़ूबसूरत चेनाब में
इस देस के हर पत्थर पे,
हर आशिक़ की है एक लक़ीर ।
रांझा जिया हीर के वास्ते
वारिस ने तो जी है हीर
हर वर्क से ख़ुशबू आती है
हर हर्फ़ में घुली है हीर ।

राँझा मर के पा गया हीर,
वारिस ने तो जी है पीर
क्यूंकि है एक ही हीर ।
दोनों की है एक ही हीर ।

3 comments:

Garima said...

Its beautiful! especially the thought of - ek heer ke liye mar gaya toh ek ne jee hai heer. so true and so well put. Kisi ki mohabbat, kisi ki muse. its got the 'storyteller's feel! with an 'iktara' automatically playing in the BG :-) esp "rivayat hai hijr ki punjab mein". even with my limited knowledge about waris shah and the rest i simply loved this one! you should do a series on them!

Anonymous said...

App bahut accha likhtai ho

Rita Puri said...

So beautifully put up..