ये ख़ाक से यारी है,
ग़ुबार का जूनून है,
के ख़्वाब देख गुज़र गए
हक़ीक़त से मोहब्बत है ।
ख़्वाब में रहते जो एक लम्हा,
गमख्वार की हसरत न होती,
दिल के हाथों नहीफ़ होते,
ज़्यादा दिलफेंक कम शरीफ़ होते
पर हम तो यूँ ही,
ख़्वाब देख गुज़र गए,
हक़ीक़त से मोहब्बत है ।
कारवाँ में यूँ भी कभी शामिल न थे,
उसकी राहों से गिला रहा है शायद,
फ़र्क दोनों में रहा ता-उम्र,
ग़ुबार ने आँखों को न सताया कभी,
आँखों में ग़ुबार रहा
नज़र में सहराँ
रब्त सा बनता गया,
यारी सी हो गयी ।
ग़ुबार का जूनून है,
इस बात का सुकून है
ज़माने भर की तरह, न कोई खौफ़,
आये तूफाँ, पूरी तैय्यारी है,
अपनी तो ख़ाक से यारी है ।
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