Thursday, October 7, 2010

ग़ुरूर

मेरे ग़ुरूर के लिए अच्छा है,
के खुश वो भी नहीं हैं ।

ग़लत तो मैं नहीं था,
होता तो यूँ मुस्कुराता न
हर बार उसकी ग़लती,
माफ़ न करता, भूल जाता न
उसकी ख़ुशी की वजह रहा,
ग़म देने का हक़ तो बनता है
खुश वो भी नहीं है
मेरे ग़ुरूर के लिए अच्छा है ।

रातें, जो काटी हैं अलग अलग कमरों में,
उन्ही कमरों में छोड़ दी हैं
हवाएं, जो साथ साथ सांसें बनायी थी,
आधी रख ली, आधी मोड़ दी हैं
इन झुरियों ने चेहरा बदल दिया
दिल जीत पर खुश है,
कमबख्त बच्चा है
पर खुश वो भी नहीं
मेरे ग़ुरूर के लिए अच्छा है ।

उसकी सारी किताबें
गठरी बना कर परछत्ती पर चढ़ा दी हैं
साल रहते शायद पन्ने खुद-बा-खुद गायब हो जायेंगे
अश्कों से रिश्ता भी तोड़ लिया है
ज़ाया नहीं करने और
अब नज़र आया के ग़म तो उससे भी है
पर मेरा ग़म, कमसकम सच्चा है
खुश वो भी नहीं,
मेरे ग़ुरूर के लिए अच्छा है ।

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